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सम्यग्दर्शन : विविध
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'वात्सल्य' ठीक प्रार्थना का उलटा है । वात्सल्य का अर्थ है - तुम दो। इसलिये हम कहते हैं, मां का वात्सल्य होता है बेटे की तरफ। बेटा क्या दे सकता है ? छोटा-सा बेटा है, अभी पैदा हुआ, चल भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, कुछ लाया भी नहीं, बिल्कुल नंग-धडंग चला आया है । हाथ खाली है। वो देगा क्या ? इसलिये समान तल तो है नहीं मां का और बेटे का । और मांग भी नहीं सकता, क्योंकि मांगने के लिये भी अभी उसके पास बुद्धि नहीं है । तो मां का वात्सल्य है 1 मां उसे जो प्रेम करती है वह सिर्फ देने-देने का है। मां देती है, वह लौटा भी नहीं सकता । उसको अभी होश ही नहीं लौटाने का ।
आठवां चरण है 'प्रभावना' । यह महावीर का अपना शब्द है। इसके लिये कहीं तुम्हें पर्याय न मिलेगा। प्रभावना का अर्थ होता है, इस भांति जियो कि तुम्हारे जीने से धर्म की प्रभावना हो। इस ढंग से उठो - बैठो कि तुम्हारे उठने-बैठने से धर्म झरे और जिनके जीवन में धर्म की कोई रोशनी नहीं है, उनको भी प्यास पैदा हो। तुम्हारा चलना, तुम्हारा व्यवहार, तुम्हारे जीवन की शैली - सभी प्रभावना बन जाए। प्रभावना हो धर्म की, सत्य की ।
महावीर कहते हैं जिस सत्य की खोज पर तुम चले हो और जो तुम्हें मिलने लगा है, उसकी खोज पर औरों को भी लगा देगा। लेकिन खयाल रखना, महावीर बड़े अनूठे शब्दों का उपयोग करते हैं । वे यह नहीं कहते, तुम लोगों को उपदेश देना, यह नहीं कहते, तुम लोगों को आदेश देना । वे कहते हैं, प्रभावना । तुम उन्हें प्रभावित भी करने की चेष्टा मत करना । तुम्हारा होना प्रभावना बने । वे प्रभावित हों, तुमसे नहा, - धर्म से, तुमसे नहीं, सत्य से ।
ये आठ अंग स्मरण हों तो सम्यग्दर्शन निर्मित होता है ।
प्रस्तुति - रेणूमल जैन, १० / ५७१ चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर
पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ।।
- हरिभद्र सूरि
न तो मेरा महावीर के प्रति पक्षपात (राग) है और न कपिल आदि के प्रति द्वेष है। जिसके वचन युक्तियुक्त (सम्यक्) हैं, उसको स्वीकार करना चाहिए ।
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. भवबीजाङ्करजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥
संसार-बीज के अंकुर को उत्पन्न करने वाले राग आदि दोष जिसके नष्ट हो गए हैं, वह ब्रह्मा हो या विष्णु, शिव हो या जिन, उसको नमस्कार है
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