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________________ यहूदी, ईसाई और इस्लाम-परम्परा में श्रद्धा का स्थान डॉ. एम.एम. कोठारी* प्रत्येक धर्म अपने अनुयायियों को अपने शास्त्र और महापुरुषों में अटूट श्रद्धा रखने की प्रेरणा देता है। हिन्दू धर्म वेदों के प्रति और बौद्ध धर्म बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के प्रति केवल आदर ही नहीं, बल्कि पूर्ण श्रद्धा की अपेक्षा करता है। जैन-परम्परा में श्रद्धा को 'सम्यग्दर्शन' (Right Attitude) कहा गया तथा इसे 'त्रिरत्न' का अंग माना गया। मोक्ष की इच्छा रखने वाले हर साधक के जीवन की यह एक मौलिक आवश्यकता है। अपने शास्त्र और तीर्थंकरों के जीवन और उपदेशों पर सम्यक् श्रद्धा के बिना सम्यक् चारित्र सम्भव ही नहीं है। आध्यात्मिक विषयों में सिर्फ 'केवली' ही आप्त हैं, क्योंकि सम्यग्ज्ञान अपनी समग्रता में उन्हें ही प्राप्त था। अज्ञान ‘अथवा अपूर्ण ज्ञान के कारण जो मिथ्यादर्शन पनपता है, उससे साधक को बचाने के लिए यह पहली आवश्यकता है। जैन-परम्परा से मेल खाने वाले धर्म और दर्शनों की एक अपनी विशेषता यह है कि वे आत्म-केन्द्रित (Soul-centric) हैं, ईश्वर-केन्द्रित (God-centric) नहीं। इसलिए इस परम्परा में जीव का पुरुषार्थ ही उसे मोक्ष के पथ पर बनाये रखता है। दूसरी ओर जो ईश्वर-केन्द्रित दर्शन हैं, भारतीय और सेमिटिक (Semitic), ईश्वर में श्रद्धा और भक्ति को जीव के प्रारब्ध और परुषार्थ से भी अधिक प्रभावी मानते हैं। उनके अनुसार ईश्वर में हमारे पापों को माफ करने की अन्तिम और पूर्ण शक्ति (veto power) है और उसकी कृपा से सांसारिक दुःखों का नाश हो जाता है तथा वह हमारी इच्छाओं को पूरा करके सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करता है (मन वांछित फल पाव)। ____ वैदिक-परम्परा में देवों की स्तुति, मंत्र और यज्ञ के द्वारा इच्छित फलों को प्राप्त करने का विधान है। श्रीकृष्ण ने गीता में बारबार यह कहा है कि अर्जुन ! तू मुझे समर्पित होजा, मेरी कृपा से तेरी सभी कठिनाइयां दूर हो जायेंगी; मेरा भक्त कभी नहीं गिरता (९.३१), तूं मेरी शरण में आजा, मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा । (१८.६६) . कर्मफल को मान्यता देते हुए भी भारत के भक्ति-साहित्य में ईश्वर को सर्वोपरि माना गया है। सेमिटिक धर्म-यहूदी, ईसाई और इस्लाम-इसी तरह ईश्वर-केन्द्रित हैं। परन्तु भारतीय और सेमिटिक-परम्परा में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है। वह यह कि भारत के भक्ति-सम्प्रदाय इस देश की सामान्य दार्शनिक परम्परा-औपनिषदिक, जैन और बौद्ध के दार्शनिक चिन्तन और व्यवहार (जो कि मूलतः ज्ञानमार्गी और ध्यानमार्गी रहा है, भक्तिमार्गी नहीं) के प्रभाव से अपने को दूर नहीं रख सके, जबकि सेमिटिक परम्परा मूलतः भक्तिमार्गी ही रही है, ज्ञानमार्गी या ध्यानमार्गी नहीं। यहूदी धर्म में श्रद्धा का स्थान __ यहूदियों का धार्मिक इतिहास मूसा से शुरु होता है। इसे जुडाइज्म (Judaism) कहते हैं। पुरानी बाइबल (Old Testament), मुख्यतः तोरा (Torah) में इस धर्म के * सेवानिवृत्त अध्यक्ष,दर्शनविभाग,जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय,जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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