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सम्यग्दर्शन : जीवन-व्यवहार
३४९ देवदासियों की प्रथा भी अन्ध विश्वासों की उपज है। अखबार में पढ़ने में आया कि इस युग में भी कर्नाटक के गुंडाकेटी गांव की एक मां ने अपनी बीमारी ठीक होने की मुराद पूरी होने पर अपनी सुन्दर नव यौवन प्राप्त पुत्री को देवदासी के रूप में समर्पित कर दिया।
मृत्यु-भोज का रिवाज कानून बनने के बाद भी गांवों में इसलिये नहीं मिट सका : कि वहां के कुछ लोग इस बात को फैलाते रहते हैं कि मृतक की आत्मा खेजड़ी वृक्ष पर तब तक लटकती रहेगी, जब तक मृत्यु-भोज नहीं किया जाता। ___ हमारे विवाह आदि उत्सवों पर भी कई हास्यास्पद रिवाज चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एक गांव में कुछ परिवारों में रिवाज है कि शादी के दिन एक बिल्ली को
ओडे (बड़ा छबड़ा) के नीचे बन्द करके रखते हैं। हुआ यों कि कई वर्षों पहले किसी के घर में बिल्ली थी, जो बार-बार रास्ता काटती थी । उसको रोकने के लिए उस पर ओडा डाल कर उसे बन्द कर दिया गया। धीरे धीरे वहां वह रिवाज बन गया।
कई वर्षों पहले 'गमा' में किसी वृक्ष के पत्ते तोड़कर प्रत्येक रोग के निदान हेतु देने की चर्चा देशभर में फैल गई। लाखों व्यक्ति वहां गये। बड़े-बड़े शिक्षित व्यक्ति भी गये। ग्रीष्म ऋतु में इतनी भीड़ एकत्रित होने से हैजा फैल गया। दस हजार लोग मर गये। बाकी लोग भी वहां से निराश होकर वापस अपने गांवों-नगरों में आये। जोधपुर शहर में मेरे पड़ोस में एक दरगाह में एक तथाकथित फकीर ठहरा, जो काच की बोतल में अपने द्वारा मंत्रित जल देता था। इतने लोग रोग निवारण हेतु पानी लाये कि शहर में बोतलों की कमी पड़ गई। वह व्यक्ति पानी के कड़ाह पर मंत्र बोलकर उसमें थूकता । हजारों लोग उस पानी को पीते। रोग किसी का निवारण नहीं हुआ। गत वर्ष गणेशजी की मूर्तियों द्वारा दूध पीने की अफवाह दूरभाष से देश के सभी नगरों व गांवों में ऐसी फैलाई गई कि करोड़ों लोगों की भीड़ देश में दूध लेकर जमा हो गई। बाद में पोल तो खुली। पर यह सब अंधविश्वासों पर भरोसा करने की प्रवृत्ति का परिचायक है। भूत-भूतनियों की कहानियां व कई करिश्मे बताने के किस्सों पर हम लोग सहज ही भरोसा कर लेते हैं। यही कारण है कि कुछ धूर्त लोग बड़े उग्र बन गये और अपने को ईश्वर का अवतार घोषित कर पूजा पाने में सफल हुए तथा जब तक पोल नहीं खुली, पूजा पाते रहे ।
ऐसे ही हजारों मंत्रकर्ताओं, तांत्रिकों व ज्योतिषियों ने हमारे देश के पुरुषार्थ को लीलने में कसर नहीं छोड़ी। उनके चक्कर में पड़े अनेक लोगों को रोते देखा गया है। एक दादी ने अपने पोते को समय पर परीक्षा देने नहीं जाने दिया, क्योंकि उनके ज्योतिषी ने जो मुहूर्त निकाला वह परीक्षा समाप्त होने का समय था। ऐसे ही नौकरी में साक्षात्कार पर जाने का मुहूर्त साक्षात्कार समाप्त होने के बाद में था। पहले एक परिवा में कोई मौत होने पर साल भर कोई शुभ काम नहीं करते थे। उस परिवार में एक बुढ़िया की मौत हो गई। उस परिवार की एक कन्या की सगाई एक योग्य वर से हुई थी, पर वर तीन माह में विलायत जाने वाला था। एक साल तक रुकना संभव नहीं था। वह सगाई टूट गई। वह कन्या वर्षों बीत गये अभी भी कुंवारी ही बैठी है।
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