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________________ अन्ध विश्वासों के घेरे में xx रिखबराज कर्णावट मनुष्य का विश्वास सम्यक्ता के अभाव में कदाचित् अन्धविश्वास के रूप में जड़ जमा लेता है। अंधविश्वास मनुष्य को उन्मार्ग की ओर ले जाता है इसलिए अंधविश्वास को जीवन में स्थान देना अज्ञान एवं मूढता का द्योतक है। यह तथ्य प्रस्तुत लेख में स्पष्टत: प्रकट हुआ है । - सम्पादक * विश्वभर में अधिकांश लोग अन्ध विश्वासों में आकण्ठ डूबे हुए हैं । उन अन्ध विश्वासों की गिनती करना अत्यन्त कठिन है, वे अनगिनत हैं । पूर्ण रूपेण उन्हें लेखबद्ध करना लगभग असंभव सा है । इसका एक कारण यह भी है कि अन्धविश्वास नये नये रूपों में पैदा होता रहता है । अतः इस लेख में मैं कुछ अन्ध विश्वासों का उल्लेख करते हुए इसका प्रारम्भ अपने में बचपन से जन्मे हुए कतिपय अन्धविश्वासों से कर रहा हूं । बचपन में मुझे बताया गया था कि शुभ काम के लिए घर से बाहर जाना हो तो • पापड़ नहीं खाना चाहिये । पापड़ खाकर जाने से कार्य में सफलता नहीं मिलती, बल्कि बिगड़ जाता है । इस विश्वास के कारण मैं परीक्षा के दिनों में और फिर परीक्षा परिणाम आने के दिनों में पापड़ नहीं खाता था । संयोग की बात है कि एक बार मैं इसमें चूक गया। मैंने 'बी. ए. की परीक्षा दे रखी थी । उसमें एक हिंदी का प्रश्नपत्र होता था जिसमें उत्तीर्ण होना आवश्यक था। उस प्रश्न पत्र में 'आधुनिक शिक्षा व नारी' विषयक निबन्ध लिखना था । मैंने वह लेख अपने तत्कालीन विचारों के अनुसार लिखकर यह नतीजा निकाला कि आधुनिक शिक्षा सीता सावित्री तैय्यार नहीं कर सकती बल्कि घर में विग्रह पैदा करने वाली नारी तैय्यार करेगी। मैं डरता था कि कहीं मुझे अनुत्तीर्ण नहीं कर दे। इस डर के कारण पापड़ नहीं खाने की सावधानी रखने लगा । एक दिन मेरे घर मेहमान आ गये । उनके साथ मैंने भी भूल से पापड़ खा लिया। उन्हें विदा करने घर से बाहर आया । मेरे पड़ोसी मित्र ने कहा कि आज अपने बी. ए. का रिजल्ट निकल गया । मैं घबरा गया, पर जब उन्होंने कहा कि मैं द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया तो मेरे जी में जी आया। उस नतीजे में केवल एक विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में था । उस कम्पलसरी हिन्दी पेपर में तो मैं जोधपुर में सबसे अधिक अंक पाने वाला था । पापड़ खाकर बाहर न जाने का मेरा अन्धविश्वास टूट गया। Jain Education International दूसरा मेरा अन्धविश्वास चांद देखने के विषय में था कि द्वितीया का चांद न देखा हुआ हो तो तृतीया का चांद देखने से कष्ट व चतुर्थी का चांद देखने से चोरी का झूठा आरोप आता है। अतः अन्य कई लोगों की तरह मैं द्वितीया का चांद देखने की पूरी कोशिश करता। ऐसा न होने पर तीज - चौथ (तृतीया व चतुर्थी का चांद देखने से बचने का पूरा प्रयत्न करता । पर हुआ यों कि मैं जोधपुर के बाहर एक अन्य कस्बे की अदालत में पेशियां कराने गया। वहां तीज का चांद मुझे दिखाई दे गया, बीज (द्वितीया) का चांद मैंने देखा नहीं था । अगले दिन मेरे छोटे पुत्र के सी. ए. का रिजल्ट * एडवोकेट, समाजसेवी एवं प्रमुख स्वाध्यायी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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