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जिनवाणी-विशेषाङ्क किन्तु यह मिथ्याबुद्धि है। सम्यग्दृष्टि ऐसा विचार करता है कि यदि भक्ति से पूजा हुआ व्यन्तरदेव ही लक्ष्मी देता होता तो धर्म क्यों किया जाता?
सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्गी होता है । वह संसार की लक्ष्मी को हेय मानता है। उसकी इच्छा ही नहीं करता है। यदि पण्य के उदय से मिले तो मिले और न मिले तो नहीं मिले, केवल मोक्ष-सिद्धि की ही भावना करता है । इसलिए सम्यग्दृष्टि व्यन्तरादि देवादिक की पूजा वन्दना कभी भी नहीं करता है।
सम्यग्दृष्टि विचार करता है कि सर्वज्ञ देव सब द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की अवस्था जानते हैं और जो सर्वज्ञ के ज्ञान में जाना गया है वह नियम से होता है। उसमें हीनादिक कुछ भी परिवर्तन नहीं होता है। जीव के जिस देश में जिस काल में, जिस विधान से जन्म तथा मरण, दुःख तथा सुख, रोग-दारिद्र्य आदि होते हैं वे वैसे ही कर्मादि के नियम से होते हैं। उनका इन्द्र, जिनेन्द्र, तीर्थंकर देव कोई भी निवारण नहीं कर सकते हैं।
हमें मिथ्यात्व रूपी डाकू से बचने के लिए इसके प्रकार और भेद जानना आवश्यक है। इनके त्याग में ही आत्मा का विकास संभव है, अन्यथा नहीं। मिथ्यात्व के तीन प्रकार
शास्त्रों में वर्णित मिथ्यात्व तीन प्रकार का है- १. अणाइया अपज्जवसिया (अनादि अपर्यवसित)-अर्थात् जिस मिथ्यात्व की आदि नहीं है और अन्त भी नहीं है वह अनादि अपर्यवसित या अनादि- अनन्त मिथ्यात्व है। यह मिथ्यात्व अभव्य जीवों को होता हैं। अनन्त भव्यजीव भी ऐसे हैं जो अनन्तानन्त काल से निगोद में पड़े हुए हैं। वे एकेन्द्रिय पर्याय को छोड़कर अब तक द्वीन्द्रिय पर्याय भी प्राप्त नहीं कर सके हैं और भविष्य में भी नहीं प्राप्त कर सकेंगें। सिद्ध शिला पर अभव्य जीवों के लिए प्रवेश-निषिद्ध (No Entry) का बोर्ड सदैव लगा रहेगा।
सदाकाल, शाश्वत रूप से जमकर रहने वाले, एवं कभी पृथक् नहीं होने वाले मिथ्यात्व के धनी को अभव्य कहते हैं। अभव्य सदा अभव्य (मुक्ति पाने के अयोग्य) और मिथ्यादृष्टि ही बना रहता है।
२. अणाइया सपज्जवसिया (अनादि-सपर्यवसित)-अनादिकाल से मिथ्यात्वी होने के कारण जिन जीवों के मिथ्यात्व, की आदि तो नहीं है, किन्तु सम्यक्त्व प्राप्त करने के योग्य होने के कारण जो मिथ्यात्व का अन्त कर डालते हैं वे अनादि-सपर्यवसित मिथ्यात्वी कहलाते हैं। वर्तमान में भी ऐसे जीव हैं जो अनादि मिथ्यात्व को दबाकर, नष्ट कर सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं और अनन्त जीव ऐसे हैं जो अभी तो अनादि मिथ्यात्व में ही पड़े हैं, लेकिन भविष्य में कभी मिथ्यात्व को नष्ट कर सम्यक्त्व प्राप्त करेंगे।
३. साइया सपज्जवसिया (सादि-सपर्यवसित)-जो मिथ्यात्व एक बार नष्ट हो जाता है, किन्तु फिर उत्पन्न हो जाता हैं और यथाकाल फिर नष्ट हो सकता है उसे सादि सपर्यवसित मिथ्यात्त्व कहते हैं। मिथ्यात्व से सम्यक्त्व की अवस्था में आने पर
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