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जिनवाणी
जिणवणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण । अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी ॥
जिनवचन में अनुरक्त जो व्यक्ति जिनवचनों का भावपूर्वक आचरण करते हैं वे निर्मल, संक्लेशरहित एवं परित्तसंसारी होते हैं ।
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परस्परोपकाये जीवानाम
सम्यग्दर्शन विशेषाङ्क
सम्पादक डॉ. धर्मचन्द जैन
प्रकाशक
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल बापू बाजार, जयपुर
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