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छहों राजाओं के दूत मिथिलापति कुंभ के पास पहुँचे और अपने अपने राजाओं की ओर से मल्ली कुमारी की मंगनी करने लगे । महाराजा कुभ ने छहों राजाओं के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध हो कर दूतों को अपमानित कर उन्हें निकाल दिया । महाराज कुंभ से अपमानित दूत अपने अपने राजा के पास पहुंचे और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।
कुम्भ महाराज का निराशा जनक उत्तर सुनकर वे बहुत कुपित हुए और सब ने सम्मिलित होकर राजा कुम्भ पर चढाई करने का निश्चय कर लिया । छहों राजाओं ने अपनी अपनी विशाल सेना के साथ मिथिला पर चढाई करने के लिए प्रस्थान कर दिया । इधर महाराज कुम्भ ने भी छहों राजाओं का मुकाबला करने के लिए युद्ध की तैयारी करली । कुछ चुनी हुई सेना को साथ लेकर महाराज कुम्भ भी अपने राज्य की सीमा पर पहुँच गये । दोनों ओर की सेनाओं में घमसान युद्ध आरंभ हो गया । एक ओर छह राजाओं की विशाल सेनाएँ थीं और दूसरी ओर अपनी कुछ सेना के साथ अकेले कुम्भ राजा । कुम्भ बडी वीरता के साथ लडे किन्तु शत्रुपक्ष की विशाल सेना के सामने इनकी मुट्ठी भर सेना नहीं टिक सकी। अन्त में हार कर पीछे हटने लगी और इधर उधर भागने लगी । अपने पक्ष को कमजोर होता देख वे अपने कुछ बहादुर सिपाहियों के साथ नगर लौट आये । नगरी के चहूंओर दरवाजे के फाटक बन्द करवा दिये और अपनी सेना को किले पर सजा कर दुप्मनों की प्रतीक्षा करने लगे। इधर
जाओं की सेनाने मिथिला को घेर लिया और नगरी के द्वार को तोड कर अन्दर घुसने का प्रयत्न करने लगी। मिथिला की बहादुर सेना के शत्रु सेना ने सब प्रयत्न असफल कर दिये।
महाराजा कुम्भ सिंहासन पर बैठे हुए युद्ध की परिस्थिति का विचार कर रहे थे । उसी समय भगवती मल्लीकुमारी अपने सुन्दर वस्त्राभूषणों में सजी हुई प्रति दिन के नियमानुसार पिता के चरण छूने आई । पिता के चरण छू कर वह एक ओर खड़ी हो गई । महाराज कुम्भ अपने विचार में इतने मग्न थे कि उन्हें मल्ली के आने का ध्यान तक नहीं रहा । पिता को अत्यन्त चिन्ता निमम देख वह बोली
"तात ! जब मैं आपके पास आती तब आपबडे प्रसन्न हो कर मुझे गोद में उठा लेते थे और मीठी मीठी बाते करते थे किन्तु क्या कारण है कि, आज आप मेरी ओर नजर उठा कर भी नहीं देख
कम्भ ने आदि से अन्त तक सारी घटना कह सुनाई और कहा पत्री ! आई हुई इस विपत्ति से छटकारा पाने के लिये मैं उपाय सोच रहा हूँ।
मल्ली कुमारी ने कहा-तात! आप पर आई हुई इस विपत्ति से छटकारा पाने का उपाय मेरे पास है । हम युद्ध से शत्रु को परास्त नहीं कर सकते किन्तु बुद्धिबल से ही शत्रओं पर विजय पा सकते हैं । यदि आप का मेरे पर पूरा विश्वास हो तो आप इस विपत्ति के बादलों को छिन्न भिन्न कर देने का भार मुझ पर छोड दे । मैंने राजाओं पर विजय पाने का उपाय सोच लिया है। महाराज कुम्भ ने कहापत्री कौनसा वह उपाय है जिससे ये राजा लोग तुम्हारी बात मान जायेंगे ।
___ मल्ली ने कहा--तात ! मैं क्या करना चाहती हूँ यह तो आप को यथा समय मालूम हो ही जायगा। आप सब राजाओं के पास अलग अलग दूत भिजवा दीजिए और उन्हें यह सन्देश कहलवा दीजियेगा कि मैं आपको अपनी कन्या देना चाहता हूँ शर्व इतनी है कि मेरा सन्देश अन्य राजा तक नहीं पहुचना चाहिए । महाराज कुम्भ को अपनी पुत्री की बुद्धिमत्ता और विवेक पर पूरा विश्वास था । उसने सभी राजाओं के पास दूत भेजे और उन्हें मोहन घर अकेले ही आने को कहा गया ।
महाराज कुम्भ का सन्देश पा कर सभी राजा प्रसन्न हुए और अकेले ही दूत के साथ मोहन घर में आ पहुँचे । छहों राजाओं को अलग अलग बिठलाया गया । छहों राजाओं की मोहनगृह के बीच
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