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________________ सोलहवर्ष तक छदमस्थ अवस्था में विचरण कर भगवान हस्तिनापुर के सहस्राम्र उद्यान में पधारे और तिलकवृक्ष के नीचे बेले का तप कर ध्यान करने लगे । शुक्लध्यान की परमोच्च स्थिति में भगवान को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। वह दिन था चैत्र शुक्ला तृतीया । केवलज्ञान के पश्चात् भगवान ने समवशरण में देशना दी। उस समय स्वयं भू आदि पैतिस आत्माओं ने भगवान के पास प्रव्रज्या ग्रहण की और गणधर पदप्राप्त किया । भगवान के शासन में ६०००० साठहजार साधु थे ६०६०० साठ हजार छ सो साध्वियां थो, ६७० छ सो सीतेर चै ही, २५०० पचीससो अवधज्ञानी, ३३४० तेतीससो चालीस मनः पर्ययज्ञानी, ३२००० बबीस हजार केवलज्ञानी, ५१०० एकावनसो वैक्रियलब्धि धरने वाले, २००० दो हजार वादी, १७९००० एक लाख उगण्यासी हजार श्रावक और ३८१००० तीन लाख एकासी हजार श्रांविकाएँ हुई । आपके शासनकाल में गन्धर्व नामका यक्ष और बला नामकी शासन देवी हुई ।। ___ केवलज्ञान के पश्चात् २३७३४ वर्ष तक भव्य प्राणियों को प्रतिबोध देते हुए भगवान विचरते रहें। निर्वाणकाल समीप जानकर भगवान एक हजार मुनियों के साथ समेतशिखर पर पधारे । वहां एक मासका अनशन कर वैशाखवदी प्रतिपदा केंदिन कृतिका नक्षत्र के योग में भगवान ने एकहजार मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया । भगवान की कुल आयु ९५००० वर्ष की थी। उनका शरीर ३५ धनुष उँचा थो । भगवान श्रीशान्तिनाथ के निर्वाण के बाद आधा पल्योपम बीतने पर भगवान. श्रीकुन्थनाथ का निर्माण हुआ । १८ भगवान श्री अरनाथ ___ जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में सुसीमा नामकी नगरी थी । वहा धनपति नॉम के प्रजावत्सल महाराजा राज्य करते थे ! वे राज्य का संचालन करते हुए भी जिन धर्म का हृदय से सदा शुद्ध पालन करते थे । संवर नामके आचार्य महाराज का उपदेश सुनकर उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्हों ने अपने पुत्र को राज्य गद्दी पर स्थापित करके संवराचार्य के पास दीक्षा धारण कर ली । प्रवजित होकर धनपतिमुनि महान कठोर तप करने लगे । बीस स्थानक की शुद्ध भावनापूर्वक आराधना करते हुए उन्होंने तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया। अनेक वर्ष तक शुद्ध भावना से संयम का पालन कर समाधि पूर्वक उन्हों देह त्याग किया । और वेयक विमान में महर्द्धिक देव बने । वहाँ से चवकर धनपतिमुनि का जीव हस्तिनापुर के प्रतापी राजा सुदर्शन की कुक्षि में फाल्गुनशुक्ला द्वितीया के दिन चन्द्र रेवती नक्षत्र के योग में उत्पन्न हुआ । उस रात्रि में महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । इन्द्रो ने गर्भ कल्याण महोत्सव किया । ___ गर्भकाल के पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी के दिन रेवती नक्षत्र के शुभ योगमें नन्दावर्त लक्षण से युक्त स्वर्णवर्णी पुत्र को महारानी ने जन्म दिया । इन्द्रादिदेवों ने भगवान का जन्मोत्सव किया. गर्भकाल में महादेबी ने आरा- चक्र देखा था अतः बालक का नाम अरहनाथ रखा । शैशव अवस्था को पारकर भगवान ने युवावस्थामें प्रवेश किया। भगवान का ६४००० चौसठहजार सुन्दर राजकन्याओ के साथ विवाह हुआ । २१००० वर्ष तक युवराज अवस्था में रहने के बाद उनकी आयुधशाला में चक्र रत्न उत्पन्न हुआ । चक्ररत्न की सहायता से भगवान ने भरतक्षेज्ञ के छ खण्ड पर विजय प्राप्त करने पर आप चक्रवर्ती पद पर अधिष्ठित हए । २१०००हजार वर्ष तक चक्रवर्ती पद पर रहने के बाद आप को वैराग्य उत्पन्न हो गया । उस समय लोकान्तिक देव भगवान के पास आये और वन्दना कर भगवान से प्रार्थना करने लगे-है प्रभु ? भब्यजीवों के कल्याणार्थ अव आप धर्मचक्र का प्रवर्तन करें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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