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________________ ५-व्याख्या प्रज्ञप्ति प्रमेय-चन्द्रिका ६-ज्ञाता-धर्मकथा अनगारधर्मामृतवर्पिणी ७-उपासकदशांग अगारधर्मसंजीविनी ८-अन्तकृद् दशांग मुनि कुमुद चन्द्रिका ९-अनुत्तरोपपातिकदशांग अर्थबोधिनी टीका १०-प्रश्नव्याकरण सुदर्शिनीटीका ११-विपाकसूत्र विपाकचन्द्रिका २ बारह उपांग साहित्य १ औपपातिक पीयूषवर्षणी २ राजप्रश्नीय सुबोधिनी ३ जीवाभिगम प्रमेयद्योतिका ४ प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनी ५ सूर्यप्रज्ञप्ति सूर्यज्ञप्ति प्रकाशिका ६ चन्द्रप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्तिका ७ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रकाशिकाव्याख्या ८ निरयावलिका (कल्पिका) सुन्दरबोधिनी ९ कल्पावतंसिका १० पुष्पिका ११ पुष्पचूलिका १२ वृष्णिदशांग ३ मूल १ उत्तराध्ययन प्रियदर्शिनी २ दशवकालिक आचारमणिमषा टीका ३ नन्दीसूत्र ज्ञानचन्द्रिका ४ अनुयोगद्वार अनुयोगचन्द्रिका ४ छेद सूत्र १ निशीथ चूर्णि-भाप्य अवचूरि २ बृहद्कल्प ३ व्यवहार भाष्व ४ दशाश्रुतस्कन्ध मुनिहर्षिणी टीका १ आवश्यक सूत्र मुनितोषिणी आपने इन बत्तीस सूत्रों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी हैं। हिन्दी और गुजराती भाषाओं में विस्तृत विवेचन के साथ इनका अनुवाद भी किया है । १ कल्पसूत्र यह आपकी स्वतन्त्र रचना २ तत्त्वार्थ सूत्र (संस्कृत प्राकृत);, , Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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