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________________ ४३० भाव ही उत्पन्न होता है । ___जैन दिवाकर का भोतीक देह आज विद्यमान नहीं है तथापि उनका अक्षर देह युग-युग तक विद्यमान रहेगा, और धर्म प्रेमी जनता को पवित्र प्रेरणा प्रदान करता रहेगा ! आपने आगम सुत्रों पर चार भाषाओं में टीका लिखकर आगम साहित्य को सर्व सुलभ बनाया है । आपके इस महान कार्य से समस्त जैन समाज उपकृत हुआ है । आपकी आत्मा को चिर शान्ति मिले यही समस्त संघ की शुभ कामना है । स्थानकवासी जैन संघ मालेगाव वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ जयपुर जयपुर संघ ने शोक सभा की और निम्न प्रस्ताव पास किया आज की यह शोक सभा ज्ञान, दर्शन चारित्र के महान उपासक संस्कृत प्राकृत आदि अनेक भाषाओं के विद्वान आचार्य श्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज के दुःखद अवसान पर गहरा शोक प्रगट करती है । उस विद्वान महापुरूष ने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि अठारह पापों से दूर रहकर मानव जीवन को अपने गहरे शास्त्रीय ज्ञान के चिन्तन मनन से जीवनपर्यन्त आलोकित किया हैं । इस वयोवृद्ध अवस्था में लगातार शास्त्र लेखन कार्य को सुव्यवस्थित रूप संचालन करते थे। उन महान आत्मा को चिर शान्ति मिले यही हमारी हार्दिक कामना है । हम भी उनके आदर्श जीवन से प्रेरणा लेकर जीवन को उन्नत बनावे । __ स्थानकवासी जैन संघ जयपुर परम पूज्य प्रखर शास्त्रवेत्ता जैन धर्म दिवाकर पं० रत्न श्री घासीलालजी महाराज के स्वर्गवास के दुःखद समाचार पढकर अत्यन्त दुःख हुआ । पूज्य श्री ने जैन समाज को अपने आजीवन प्रयत्नों व कई प्रकार के विघ्नों का सामना करके भी जो धार्मिक साहित्य दिया है उसके लिए सारा समाज अनन्त समय तक उनका आभारी रहेगा। उन्होंने अपना सारा जीवन इस यार्य में लगा हि दिया । पूज्यश्री एक महान चरित्रवान सन्त थे । त्याग, तप और ज्ञान के अवतार थे । करीब ५० वर्ष तक मैं पूज्यश्री की सेवा में रहकर उनके साहित्य निर्माण में सहयोग देता रहा हूँ उनके स्वर्गवास से जो समाज में महान क्षति हुई है उसकी पूर्ति निकट भविष्य में असंभव हैं। पूज्यश्री के सदुपदेश से केवल जैन धर्मावलंबी ही अपने धर्म पर दृढ नहीं हुए वरन् अन्य मतवाले अनेक लोगों ने भी जैन धर्म स्वीकार किया। हिंसा में रत रहने वाले कुछ राजा महाराजाओं ने भी आपके उपदेश से हिंसा का त्याग किया । मेवाड प्रान्त के हजारों गांवों में आपने जीव हिंसा बन्द करवाई । उनकी इस महिमा को देखने का मुझे सौभाग्य मिला है । पूज्यश्री के त्याग तप एवं आदर्श जीवन का स्मरण करता हुआ इस महापुरुष के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पण करता हूँ। पं० मूलचन्द व्यास नागोर (राजस्थान) [40 मुनि श्री कन्हैयालालजी म० 'कमल'] महा श्रमण का महा प्रयाण विश्वबंधु भ० श्री महावीर प्रभु के अनन्त ज्ञान गगन से अवतरित सदा शिव श्री सुधर्मा के सहस्त्र कमलदल में समाहित और श्रुत सेवियों की अविछिन्न परम्परा में प्रवहित श्रुत पूज्य प्रवर श्री घासीलालजी महाराज के भागीरथ प्रयत्नों से त्रिपथगा (संस्कृत, हिन्दी, और गुजराती में) बनकर भव्य भावुक जनों के हृदयों को चिरकाल से अप्लावित कर रही थी। वह युगसृष्टा श्रुतधर इस मृत्युलोक से महाप्रयाण कर अमरत्व की ओर अग्रसर हो रहा है । उनकी अमर कृतियां पाकर जिज्ञासु जगत कृतकृत्य है एवं श्रद्धावनत है । श्रद्धेय महाश्रमण के सान्निध्य में रहकर उनकी ज्ञानगरिमा महती महिमा और सम्परायलघिमा को समझने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है । अतः मेरा यह दृढ विश्वास हैं कि उस युग प्रधान पुरुष का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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