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सिर्फ प्रवाही पदार्थ लेते थे । लेकिन उन पदार्थो के प्रति भी उनकी आत्मा से विरक्ति ही थी। अब आपने चतुर्विध आहार का त्याग कर पोष वदि १४ बुधवार को प्रात दश बजकर दस मिनोट दि० २-१-७३ को संथारा किया। इस अवसर पर दरियापूरी संप्रदाय के पू. आचार्य श्री शांतिलालजी महाराज ठा० ४ व वसुमतिबाई, तथा पूज्यश्री की शिष्या श्री इन्दुबाई वि. महासतिजी भी सेवा में पधार गई थी।
दि० ३ १ ७३ के सायंकाल के समय पं. मुनिश्री कन्हैयालालजी महाराज प्रतिक्रमण करा रहे थे। प्रतिकमण का पाठ सुनाते समय जहां मिच्छामि टुक्कडम् बोलना होता था वहां पूज्यश्री बड़ी सावधानी पूर्वक श्रवण करते थे । प्रतिक्रमण के बाद पूज्यश्री की शारीरिक स्थिति अत्यन्त चिन्तनोय हो गई । हजारों श्रावक गण उपाश्रय के प्रांगण में एकत्र होकर भजन कीर्तन करने लगे । संथारे की सूचना तार टेलिफोन आकाशवाणी द्वारा सर्वत्र भेजी गई । ता०३-१-को तो हजारों भाई बहन संथारे की सूचना मिलते ही सरसपुर पहुंच गये थे । पूज्यश्री की मिनिट मिनिट पर स्वास क्रिया तोब होती गई । और अंत में पोषवद अमावश्या और बुधवार ता. ३-१-७३ का रात्रि के नौ बजकर २९ मिनीट पर पूर्ण समाधि पूर्वक में बह ज्योति पुंज हंसते हंसते इस लौकिक पार्थिव देह को छोडकर उस महान ज्योति पुंज में एकाकार हो गया । इस
सर्वनाता तोड आप अलौकिक स्थान में जा बिराजे । पूज्य आचार्य श्री के परम भक्त दिल्लीवाले अनन्य सेवाभावी दानवीर शुद्ध श्रमणोपासक झवेरी श्री कपुरचन्दजी सेठ किशनलालजी सा. महेताबचन्दजी सा. हजारीलावजी सा. विज्याब्हेन निर्मला बहेन विगेरे सर्व भक्त गण भी दो तीन दिन पहले से ही सेवा में उपस्थित हो गये थे जब तप और दान का अखूट प्रवाह चल रहा था । । ___ उस समय आचार्यश्री के संथारा सीझने का समाचार अहमदाबाद नगर के इस ओर से उस ओर तक प्रसारित हो गये । इन समाचारों को संघ ने आकाशवाणी अहमदाबाद और दिल्ली केन्द्र से रात को १० बजे प्रसारित किये । प्रातः नौ बजे भी उन समाचारों को पुनः प्रसारित किये । अहमदाबाद के सभी समाचार पत्रो में पूज्यश्री के स्वर्गवास के समाचार प्रकाशित करवाये। उस दिन अहमदाबाद निवासियों ने अपना अपना कारोबार बंद कर दिया । आचार्य श्री के अन्तिम देह के दर्शनार्थ को अपार भीड उमड पडी । जिसने सुना वह दर्श
। बाहर से भी हजारों लोग दर्शनार्थ आये । चारो ओर भजन मण्डलियां उच्चस्वर से भजन गाने लगी। सारी रात भजन मण्डलियों के कोतेन का अलौकिक आध्यात्मिक वातावरण बना रहा । विधिवत महाप्रयाण को सभी तैयारिया रात्रि में पूर्ण करली गई ।
दूसरे दिन ता०४-१-७३ को प्रातः १० बजे पालकी में आचार्यश्री का प्रार्थिम देह रखा गया। आचार्य श्री का देह स्वेत वर्णवस्त्र कंबलों से एवं कुंकुम गुलाल से सुशोभित था । उस समय पालकी के चारों पायों को बोली बोलन के लिए श्रोमानों की सभा मण्डप में सभा हुई । प्रारंभ में पंजाबी बहनों ने “तुमतरण तारण दुःख निवारण भविक जीव अराधनम्" इस स्तुति पाठ से कार्यवाही प्रारंभ हुई । छीपापोल संघके कार्यकर्ता श्रीमान पुजालालभाईशाह ने यह घोषणा की कि "बोली में आनेवाली तमाम रकम शास्त्रोद्धार के कार्य में खर्च की जायगी । अभी तक २७ आगमो का प्रकाशन हुआ है और पांच आगमों का प्रकाशन का कार्य बाकी है। साथ हो पूज्यश्री का अन्य अप्रकाशित साहित्य भी प्रकाशित करना हैं । अतः इस पुनित कार्य में आप लोग अधिक से अधिक सहयोग प्रदान करें ।” साथ ही इस पवित्र कार्य के प्रकाशन के लिए अभी कम से कम ढाईलाखरुपयों को नितान्त आवश्यकता है। तथा जीव दया के लिए भी अन्य फण्ड खास एकत्र करना है। पूजालाल भाई के प्रभावशाली वक्तव्य का जनता पर अच्छा प्रभाव पडा और बात ही बात में २, ३१, १४८ रुपयों का विशाल फण्ड एकत्र हो गया । इसके अतिरिक्त जीव दया के लिए ३१ हजार रुपये एकत्र हुए ।
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