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________________ ४१५ श्री जयाबाई स्वामी ठाना ५ ने भी अपना वर्षा काल यही व्यतीत किया । महासतीजी जयाबाई स्वामी बडी विदुषी साध्वी है । आपने चातुर्मास काल में पूज्यआचार्यश्री से प्राकृतव्याकरण का अध्ययन किया । चातुर्मास काल में पूज्य श्री के प्रतिदिवस प्रवचन होते थे । तपस्वीजी की तपस्या के अवसर पर आस पास के ग्राम निवासी सैकड़ों की संख्या में दर्शनार्थी आते थे । समस्त गांव में अगता रखा गया । बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों का स्थानीय संघ ने भोजनादि से अच्छा स्वागत किया । त्याग प्रत्याख्यान भी आशातीत हुए । तपस्या की सफल पूर्णाहुति के बाद पूज्यश्री का आगम लेखन का कार्य नियमित चलता रहा । समस्त चातुर्मास काल में जो धर्म ध्यान हुआ उसका सम्पूर्ण आलेखन करना अशक्य है। ईस प्रकार अनेक धार्मिक कार्य एवं परोपकार करते हुए धोराजी का चातुर्मास समाप्त हुआ । चातुर्मास की समाप्ति के बाद आपने विहार कर दिया। यहां से पूज्य श्री ने ठाना ५ से भाणवड की ओर विहार किया। भाणवड में आपने पधारकर वर्षीतप का पारना करवाया। इस अवसर पर भी अच्छा धर्म ध्यान हुआ । भाणवड से विहारकर आप पुनः धोराजी पधारे । धोराजी में उपलेटा का संघ पूज्यश्री के दर्शनार्थ आया और अपने यहाँ पधारने की विनंति करने लगा । श्रीसंघ की प्रार्थना को स्वीकृत कर आपने उपलेटा की ओर विहार किया । उपलेटा पधारे । स्थानीय संघ ने आएका भव्य स्वागत किया । प्रतिदिन आपके जाहिर प्रवचन होने लगे । व्याख्यान में इतनी भीड होती थी कि लोगों को बेठने जगह नहीं मिलती थी। तब आपके प्रवचन हायस्कूल के प्रांगन में होने लगे। उस समय के मुख्य मंत्री श्री ढेबर भाई, गृहमन्त्री रसीकलाल भाई, बललन्तभाई जेठालालभाई तथा गांव के अन्य प्रतिष्ठित सज्जन हिन्दू मुसलमोन पटेल आदि सभी लोग बडी संख्या में आपके प्रवचन सुनकर आध्यात्मि आनन्द का अनुभव करते थे । यहाँ के श्रावकों में सेठ कृपा शंकर. भाई वनेचन्दभाई सेठ नरभेरामभाइ प्रतापभाई, बोधाणीवकिल पुंजाणी वकील ज्ञानचन्दभाई नटुभाई इत्यादि ने पूज्य श्री के प्रेति अत्यन्त भक्तिभाव का परीचय दीया। आपके प्रभावशाली व्याख्यान और उच्च चारित्रशोलता से प्रभावित होकर उपलेटा के श्रीसंघ ने सोचा यदि पूज्यश्री का चतुर्मास यहां पर हो कराया जाय तो जनता को बहुत अधिक लाभ होगा । हमारे धार्मिकज्ञान में वृद्धि होगी यह सोचकर श्री संघ पूज्यश्री के पास आकर आगामी चातुर्मास के लिए आग्रह पूर्वक विनंती की । उपलेटा निवासी श्रावक श्राविका की इस प्रकार की उत्कृष्ट श्रद्धा तथा विपुल उत्साह को देखकर आपश्री ने आगामी चातुर्मास उपलेटा में सुखे समाधे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का आगार रखकर. स्वीकार किया । पूज्यश्री की इस स्वीकृति से श्रीसंघ के श्रावक श्राविकाएँ हर्षोत्फुल्ल हो उठी । आचार्यश्री ने चातुर्मास की स्वीकृति फरमाकर अन्यत्र विहार कर दिया । वि. स. २००९ का ५१ एकावनवां चतुर्मास उपलेटा में चातुर्मास के प्रारम्भ के पूर्व आप सौराष्ट्र के मध्यवर्ती ग्रामों में विचरण कर चातुर्मासार्थ उपलेटा पधार गये । स्थानीय जनता ने आपका भव्य स्वागत किया । प्रतिदिन प्रातः प्रार्थना के बाद आप व्याख्यान फरमाने लगे, व्याख्यान, प्रार्थना के समय जनता की उपस्थिति अच्छी रहने लगी। तपस्वीजी श्री मदनलालजः म० ने अपनी दीर्घ तपस्या प्रारम्भ कर दी। तपस्या के दिनों में अनेक श्रावक श्राविकाओंने छोटी बड़ो तपस्या के अतिरिक्त ३०, १५, ८, ५-५ -३, २ तथा उपवास पोषध आदि बड़ी मात्रा में हुए । ___ उपलेटा संघ के लिए यह एक अपूर्व अवसर था । संघ ने तप पूर्णाहुति दिवस को बड़े समारोह के साथ मनाने का निश्चय किया । पत्र पत्रिकाओं से आस पास के सभी गावों वालों को सुचना भेजी गई । भाद्र शुक्ला १४ को तपश्चर्या की पूर्ति का दिवस था । स्थानीय संघ ने समस्त बाजार बन्द रखा । - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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