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परिवार ने पूज्य श्री कि सेवा का लाभ लिया । इसी प्रकार सेठ साकरचन्द भाई रुपाणी तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पूरीबहन ने तीन वर्ष तक अखण्ड भाव से पूज्य श्री तथा मुनिवरों की अपूर्व सेवा का जो लाभ लिया वह स्तुत्य एवं प्रशंसनीय था ।
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चातुर्मास दरमियान सौराष्ट्र के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री उछरंगराय भाई ढेबर ने तथा गृहमंत्री श्री रसीकलाल भाई परीख ने पूज्य श्री के दर्शन किये । मुख्य मंत्री श्री ढेबरभाई एक सामान्य बंगले में रह रहे थे । साज सामान फनीचर की दृष्टि से उस बंगले में कुछ नहीं था । केवल एक टेबल और एक कुर्सी उनके यहां गृह कार्यालय में थी । उनसे जो मिलने आते उनके साथ जाजम पर बैठकर ही बातचीत करते थे । उनकी इस महान सादाई ने ही उन्हें अधिक समय तक मुख्य मंत्री पद पर टिकने नहीं दिये । और न उन्हें फिर से कहीं उस पद पर आने दिये । गांधी वादी कहलानेवाली कोंग्रेस सरकार गांधीवादी न रहकर सामंतशाही बन गई है । पूज्य श्री की आज्ञा से मुख्य मंत्री श्री ढेबरभाई ने राजकोट में अगते (पाखी) के साथ ईश्वर प्रार्थना दिन निश्चिन्त किया और जाहिर सभा में पूज्य श्री का तथा श्री संतवालजी का ईश्वर प्रार्थना सम्बन्ध में संयुक्त भाषण हुआ ।
जेतपुर के सेठ श्री कहानदास भाई कोठारी तथा श्री वेणीचन्द भाई कोठारी - दोनों भाई शास्त्रोद्धार समिति के मेम्बर होने से राजकोट पूज्य श्री के दर्शनार्थ आया ही करते थे । दोनों भ्राता ने पूज्य श्री को जेतपुर पधारने का कई बार आग्रह किया । कोठारी बन्धुओं के आग्रह को स्वीकार करके सं २००६ का चातुर्मास पूर्ण होते ही पूज्य श्री ने अपने मुनियों सहित विहार किया । प्रथम विहार कोठारिया स्टेशन पर हुआ, जहां राजकोट से पहुंचाने के लिये श्रावक श्राविकाएँ बहुत बडी संख्या में आए थे। सीन्ध से आए हुए सीन्धी शरणार्थी लोग जो पं० श्री सभीरमुनिजी द्वारा जैन धर्म से परिचित हुए थे, वे भी सपरिवार वहां तक पहुंचाने आए । पहुँचाने के लिए आने वालो को काका हरगोविन्द भाई की तरफ से भोजन कराया गया ।
आगे विहार करते हुए गोंडल पधारे । गोंडल सोसायटी में ही पूज्य श्री बिराजे । गोंडल नरेश की प्रजा पालन में बहुत बडी प्रशंसा थी । अंग्रेज के समय में गोंडल नरेश के लिये चार वातें कही जाती थी। (१) जिन गांवों के किसान स्त्री पुरुषों के शरीर पर बहुत प्रमाण में सुवर्ण आभूषण दिखाई दें तो समझना कि यह गांव गोंडल राज्य का है । ( २ ) जिस रोड (सड़क) पर मोटर में बेठे हुए को कहीं भी झटका (आंचका) न लगे तो समझना कि यह गांव गोंडल का है । ( ३ ) छोटे बड़े सभी गावों में राज्य महल जैसी स्कूल दिखाई दे तो समझना कि ये गॉव गोंडल राज्य का हैं । ( ४ ) खेतों पर कुए और सरब्ज खेती दिखाई दे तथा देशी खातों का ढेर दिखाई दे तो समझना कि यह प्रदेश गोंडल राज्य का है । इस प्रकार गोंडल नरेश की प्रजा हित व्यवस्था के लिये अंग्रेजों की तरफ से प्रमाण पत्र उस समय के स्कूलों में लगे हुए दिखाई देते थे । वांकानेर मोरबी और गोंडल राजा अपने समय इतने प्रजा हितेषी थे कि जब भी राज्य में दुष्काल होता तो स्वयं अपने गांवों में नित्य जाते और मनुष्यों के लिये अनाज की जहां जरूरत होती वहां तत्काल पहुंचाते । गोंडल नरेश का जैन मुनियों व जैन धर्म के प्रति पूर्ण स्नेह है । राज्य में जैनों का पूर्ण सन्मान है । जैन पर्वो के दिन अगते (पाखी) भी पलाये जाते हैं । यहां गोंडल सम्प्रदाय के शास्त्रज्ञ पूज्य आचार्य श्री पुरुषोत्तमजी म० विराजित थे । बडेहि दक्ष हिमायति थे । पूज्य श्रीघासीलालजी म० के तथा पूज्य श्री पुरुषोत्तमजी म. सौहार्द पूर्ण विचार विनिमय हुआ । जब स्नेह बढगया और सारा क्लेश
समयज्ञ थे और आचार विचार के के परस्पर शास्त्र लेखन सम्बन्ध में खतम हो गया !
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