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महात्मा प्राणलाल भाई मोरबी संघ में एक कुशल प्रभाविक कार्यकर्ता थे । वे मोरबी के गान्धी कहलाते
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थे । उन्होंने व्याख्यान में उपस्थित बहनों को कहा कि दर्शनार्थ आने वालों का सत्कार करना मोरबी संघ का परम कर्तव्य हो जाता है । संघ अन्य व्यवस्था कर लेगा, परन्तु शक्कर की व्यवस्था करना बहनों के हाथ की बात है | संघ कल चार कोठियां यहां रखेगा, प्रत्येक घरों को कंट्रोल की शक्कर मिलती ही है । उस शक्कर में से अपनी इच्छानुसार थोडी थोड़ी शक्कर लाकर इन कोठियों में डालें। एक सप्ताह में चारों कोठियें जो शक्कर से भर गई तो शेष सभी व्यवस्थाएँ हो जाएगी । महात्मा के कहने पर शक्कर प्रत्येक घर से बहनों द्वारा आने लगी । मोरबी जैसे बड़े संघ में चार कोठियां भरजाना कोई बड़ी बात नहीं थी । बहनों द्वारा कोठियां भर जाने पर नगर सेठजी की आज्ञा से दशनार्थियों के लिये रसोड़ा खोल दिया गया । नगर सेठजी व महात्मा प्राणलालभाई काले बजार से कोई वस्तु लेकर राज्य विरुद्ध कर्म करना नहीं चाहते थे । भोजन की सभी वस्तुएँ भेट या उचित मूल्य से ही लीगई ।
तपस्वी श्री मदनलालजी म० अने तपस्वी श्री मांगीलालजी म. वे ७३ दिन की बडी तपस्या की । मोरबी श्राविकासंघ में भी तपश्चर्या की लॉइनदारी लग गई । धर्म ध्यान तपश्चर्या से पर्युषण पर्व बडे हि उत्साह से मनाया गया । पर्युषण के बाद तपस्वी मुनि के पारणों में दो दिन रहे, तब नगर सेठ सो. तथा संघ की विनन्ति पर धर्म ध्यान को दृष्टि से पूर का दिन प्रकट किया ।
मोरबी महाराजा श्री लखधीरसिंहजी सा. बहुत ही धर्मात्मा थे । उन्होंने अपने जीवन में दाँरु माँस का आचरण कभी भी नही किया । शिकार की दृष्टि से कभी भी किसी जानवर पर गोली नहीं छोड़ी । महारानीजी होते हुए वे भी बारह वर्ष से ब्रह्मचर्य व्रत पालन कर रहे थे । अचार के अहिंसक मोरबी नरेश पूज्य श्री घासी. लालजी महाराज के तथा तपस्वीजी म० के दर्शनार्थ पधारे । आपने तपश्चर्या के पूर के दिन मोरबी राज्य में अगता (पाखी) पालने का आदेश दिया ।
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पूर के दिन विशाल ग्रीन चौक में मोरबी के जैन अजैन हजारों स्त्रीपुरुष पूज्य श्री के व्याख्यान श्रवण के लिए आए । पूज्य श्री ने तपश्चर्या के महत्व पर सार गर्मित्त व्याख्यान दिया । मोरबी महाराजा भी व्याख्यान में पधारे । मोरबी की सर्व जनता तपस्वी मुनि के दर्शन करके बहुत ही प्रसन्न हुई । राजकोट के काका हरगोविन्द जयचन्दभाई कोठारी सकुटुम्ब दर्शनार्थ आए । इन्होंने पूज्य श्री को चातुर्मास के बाद राजकोट पधारने की विनंती की। तदनुसार चातुर्मास समाप्त होने पर पूज्य का श्रीमोरबी से राजकोट पधारने के लिये विहार हुआ । मोरबी से मालिया होते हुए पूज्य श्री टंकारा पधारे । टंकारा एक प्राचीन राज्यधानी का सुरम्य स्थान है। टंकारा महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्य समाज संस्थापक की जन्मभूमी होने से यहां आर्य समाज की और से महत्वपूर्ण संस्था चल रही है । टंकारा से छोटे बडे क्षेत्रों को पावन करते हुवे राजकोट पधारे और नदी किनारे काका हरगोविन्द भाई कोठारो द्वारा निर्मित व्याख्यान भवन में बिराजे ।
राजकोट में उस समय क्षत्रीय वंशज राजपुत कुव से दिक्षित लीम्बडी संम्प्रदाय के अहिंसा मूर्ति जीवदया प्रेमी प्रभाविक श्री जेठमलजी महाराज वहां काका की पोषघशाला में विराजितथे । इन मुनि श्री को सौराष्ट्रे के सभी राजाओं की तरफ से तथा अंग्रेज सरकार की तरफ से परवाना पत्र मिले हुए थे । उस आधार से वे गाडी तांगे में जोड़े हुए लंगडे रोगी पशु को तत्काल छुडवा देते थे। पशुओं के साथ निर्दय व्यवहार मनुष्यों द्वारा कहिं होता हुआ दिखाई देता हो तो उसे तुरन्त छुडवा देते । यदि कोई अनजान नहीं मानता तो उसी समय पुलिस में जानकारी पहुँचते ही पुलीसवाले उसको अपने कब्जे में ले लेते थे । इन मुनि का जिस शहर में पदार्पण की खबर मिलते ही सर्वलोग सजाग हो जाते थे । वैसे पशुओं को वे स्वयं गाडी तांगे में जोतना बन्द कर देते । अधिक भार या अधिक सवारियाँ भी नहीं लेते। उनकी इस प्रकार सारे
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