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________________ ३८४ पुर पधारने की प्रार्थना करने लगा । पूज्यश्री ने भावी उपकार को ध्यान में रखकर अपनी मुनिमण्डली के साथ उदयपुर की आर बिहार किया । मार्ग के अनेक गांवों को पावन करते हुए आप मदार पधारे । मदार में आपका जाहिर प्रवचन हुआ । मदार के ठाकुर श्रीमान् शार्दूलसिंहजी अपने राज परिवार के साथ आपके प्रवचन में आये। प्रवचन से प्रभावित हो मालासर माताजी के स्थान पर एवं जगत् माताजी के स्थान पर प्रतिवर्ष दो पाडों की बली कीजाती थी उसे सदा के लिए बन्द करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । ठाकुर साहब ने इस विषयक पट्टा लिखकर पूज्य श्री को भेट किया । इस पट्टे की प्रतिलिपी इस प्रकार है जगत का जीवदया का पट्टा श्रीरामजी पूज्यश्री घासीलालजी महाराज की पवित्र सेवा में मालासर माताजी और जगत माताजी के ठिकाने से हरसाल दो पाडे चढते थे वे अब बन्द कर दिये हैं अब कभी भी नहीं चढाएँ जायेंगे। सं १९१७ ष सुदी ३ दः शार्दूलसिंह जगत् (ठाकुर साहब) मदार निवासियों को प्रतिबोध दे आप नाई पधारे । नाई गांव संघ ने आपका भाव भीना स्वागत किया । महाराणा भूपालसिंहजी के प्राइवेट सेक्रेटरी श्रीमान् चौवीसाजी साहेब एवं उदयपुर संघ बडी संख्या में नाई पूज्यश्री के दर्शन के लिए उपस्थित हुआ । और उदयपुर पधारने की प्रार्थना करने लगा। पूज्यश्री ने उदयपुर पधारने की स्वीकृति दे दी । नाई से आप उदयपुर पधारे । उदयपुर में चान्दपोल के बाहर हनुमान टेकरी पर स्थित महाराणो भूपालसिंहजी के निवास स्थान पर पधारे । वहाँ श्रीमान् महाराणा साहब ने आपका १॥ घंटे तक धार्मिक प्रवचन सुना । आध घंटे तक आप महाराणा साहब से धार्मिक चर्चा वार्ता करते रहे । महाराणा साहब ने मुलाकान्त के अन्त में बडा सन्तोष व्यक्त किया । इस प्रकार दो घन्टे तक महाराणा साहब को प्रति ध देकर आप गोपालभवन एवं गलुण्डिया भवन में पधारे । यहाँ आपके नियमित प्रवचन होने लगे। प्रवचन में उदयपुर के प्रतिष्ठित नागरिक, शिक्षक, शिक्षाधिकारी । राज्याधिकारी और सामान्य जनता बडी संख्या में उपस्थित होकर प्रवचन सुनने लगो । जनता पर आपके प्रवचनों का गहरा असर पडा । उदयपुर के विभिन्न स्थानों में कुछ दिन तक बिराजकर और प्रवचन पीयूष से जनता को तृप्त कर आप एकलिंगजी पधारे एकलिंगजी तीर्थ स्थान माना जाता है। मेवाड के अनेक तीर्थस्थानों में इसका भी अधिक महत्व माना जाता है । मेवाड के आद्यराजा बापारावल से ही इस तीर्थ की महिमा गाई जाती है । मेवाड राज्य में यह मान्यता है कि "एक लॅग महादेव का ही यह समस्त राज्य है महाराणा तो केवल उसके दिवान है । मेवाड का समस्त राजघराणा इसका उपासक है। पूज्यश्री के एकलिंगजी में पधारने के बाद एकलिंगजी के मुख्य पूजारी महन्तश्री ने पूज्यश्री का भावभीना स्वागत किया । पूज्यश्री के उपदेश से महन्त ने “ ॐ शान्ति की प्रार्थना का आयोजन किया। समस्त एकलिंगजी की जनता प्रार्थना सभा में उपस्थित हुई । पूज्यश्री ने प्रार्थना सभा में 'ईश्वर प्रार्थना' पर मननीय प्रवचन दिया । प्रवचन का जनता पर अच्छा प्रभाव पडा । एकलिंगजी से बिहार कर पूज्यश्री देलवाडा पधारे । देलवाडा रावजी ने आपका भावभीना स्वागत किया । आपका यहाँ जाहिर प्रवचन हुआ । देलवाडारावजी अपने राज्याधिकारियों के साथ प्रवचन में पधारे । पूज्यश्री के आगमन के उपलक्ष में यहाँ अगता रखा गया । देलवाडा के बहार तालाव की पाल पर पूज्यश्री की प्रवचन सभा हुई । प्रारंभ में ॐ शान्ति की एक घन्टे तक धून लगाई गई । रावजीसाहेब श्रीखुमानसिंहजी भी जनता के साथ धून गाते रहें । । इसके बाद पूज्यश्री ने 'ईश्वर प्रार्थना' पर एक घन्टे तक प्रवचन दिया । प्रवचन के अन्त में जनता ने यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान किये । देलवाडे की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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