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करने के लिये बडी संख्या में आये । खाखडी के ठाकुर सा खुमानसिंहजी ने अपनी तरफ से ॐशान्ति प्रार्थना को खुशी में वहाँ एक बकरा लाकर उसे अमर कर दिया । तथा गांव के श्रावकों की तरफ से २५, ३० बकरों को अमरिया कर दिया । तथा उपवास आयंबिल दया पौषध आदि धर्म ध्यान खूब हुआ । अनेकोंने जीवहिंसा व दुर्व्यसनों का त्याग किया। यहाँ उदयपुर से बिहार कर मनोहर व्याख्यानी प्रतापमलजी म. व मनोहरलालजी म. सा. का पधारना हुआ । पूज्यश्री के दर्शन कर बडी प्रसन्नता प्रगट की । कुछ दिन ठहरकर उन्होंने सायरा की ओर बिहार कर दिया । गोगुदे से रावजी साहब श्री भैरुसिंहजी साहब व अपछरी के ठाकुर श्री भोपालसिंहजी व गार्जनसाहब अपछरी महाराजकुमार साहब श्री रघुवीरसिंहजी आदि परिवार सहित पधारकर पूज्यश्री के दर्शन किये व व्याख्यानश्रवण कर बडी प्रसन्नता प्रगट की । सेरे प्रान्त का बिहार
जसवंतगढ से बिहार कर पूज्यश्री नांदेसमां ढोल होते हुए कम्बोल पधारे । यहाँ परम प्रतापी पूज्य अमरसिंहजी म० की संप्रदाय की विदुषी महासतीजी श्री लहरकुँवरजी म० ठाना चार से बिराजती थी । महासतीजी बडी विचक्षण व सरल हृदयी है । पूज्यश्री के दर्शनकर उन्होंने बडा संतोष व्यक्त किया ।
यहाँ से पूज्यश्री पदराडा पधारे । पदराडा के ठाकुर साहब श्री मानसिंहजी बडे संत भक्त हैं । पूज्यश्री के बिहारकरजाने के समाचार सुनकर वे करीब देढ मील जहाँ पूज्यश्री बिहारकर जा रहे थे वहां पहुंचे और अति आग्रह कर वापस ले आये । एक दिन का अगता पालकर ॐशान्ति की जाहिर प्रार्थना की। सैकडों बकरों को अभय दान मिला । यहाँ से पूज्यश्री सुवावता के गुडे होते हुए तरपाल पधारे । यहाँ के श्रावकों ने पूज्यश्री के उपदेश से १०-१२ बकरों को अभयदान दिया । तरपाल से आप वापस जसंवतगढ़ पधारे ।
भीनासर में यशस्वी पूज्यआचार्यश्री जवाहिरलालजी म० के अत्यंत रुग्णस्थ होने के समाचार पूज्यश्री को मिले थे। शायद उनकी बिमारी की अवस्था में बुलाने पर भिनासर जाना पडे इस विचार से पूज्यश्री ने चातुर्मास पूर्णिमा के पहले न मानने का निश्चय किया । तपस्वी मुनिश्रीकी तपश्चर्या
आषाढ कृष्ण ४ गुरुवार ता० २-७-४२ से घोर तपस्वी श्री मदनलालजी म. सा. व घोर तपस्वी श्री मांगीलालजी महाराज सा० ने पूज्यश्री की आज्ञा से महान तपोव्रत धारण किया । इसी रोज यहाँ से बिहार कर जसवंतगढ से थोडी दूर भेरुजी के मन्दिर में रात बिराजे । ता० ३-७-४२ को गोगुंदा होकर चातुर्मास के लिए आषाढ कृष्णा ५ शुक्रवार ता०४-७-७२ के मंगल प्रभात में पूज्यश्री का बगडूंदे गांव में पधारना हुआ । जैन अजैन जगत सेंकडों की संख्या में पूज्यश्री का स्वागत करने के लिए दूर तक सामने आया । पूज्यश्री के आगमन से सारा गांव हर्षित हो उठा। वि. स. १९९९ का चातुर्मास बगडु देमें
सर्व लोग अपने भाग्य को सरहाने लगे थे कारण कि बगडू'दा क्षेत्र में आज दिन तक कोई मुनियों का चातुर्मास नहीं हुआ था । न कभी ऐसे अलभ्य लाभ की संभावना ही थी। यहाँ वालों को यह लाभ सहसा प्राप्त हआ जिससे सर्व का हृदय प्रफुल्लित हो उठा । श्रावक श्राविकाओं के मंगल गान और तुमुल जयध्वनि से पूज्यश्री ने बगडूदे में प्रवेश किया । चातुर्मासार्थ पूज्यश्री सरकारी कोटडी में बिराजे । व्यवस्थित सभा के रूप में जनता के बैठ जाने पर पूज्यश्री ने मङ्गल स्तुति की और भाववाहक प्रवचन किया । अपने प्रवचन में आपने सन्त सेवा पर मार्मिक प्रवचन दिया । बाद में श्रीमान् कन्हैयालालजी साहब ने अपना वक्तव्य पढकर सुनाया जिसमें पूज्यश्री की इस असीम कृपा के लिए अपने व श्री संघ के भाग्य की सराहना की। अन्त में पूज्यश्री व मुनिराजों के गुण कीर्तन कर जयध्वनि के साथ सभा विसर्जित हुई ।
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