SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूर करने का उपाय सोचने लगो । सहसा उसे अपने गर्भस्थ महानआत्मा का ध्यान हो आया । वह विचारने लगी-मेरे घर में ही समस्त विश्व को शान्ति प्रदान करने वाले त्रिलोकीनाथ बिराज रहे हैं । ____संसार के अन्धकार को, रोग, पोडा, महामारी को दूर करने वाले सच्चे युगपुरुष मौजूद है तो मैं इन्हीं का स्मरण कर क्यों नहीं संसार का दुःख दूर करूं ? यह विचार कर महाराणी धीरे धीरे महल के छत पर पहुंची । उसी समय दासो ने महाराणो के चरण को धोकर वह जल महाराणी को दिया । महाराणी ने गर्भस्थ इष्ट देव का स्मरण कर वह जल चारों दिशा की ओर छिडका । जल के छिडकते ही सर्वत्र श प्रजाजनों में अपार हर्ष छा गया। और महाराजा के पास आ कर महामारी के उपशान्त होने की बात कही । महामारी उपशान्त हाने की बात सुन कर महाराजा ने अपना ध्यान छोडा और प्रजा का बड़ा सत्कार किया। महारानी ने अपने गर्भस्थ बालक का चमत्कार बताया । संसार में जिनके नाम मात्र से ही शान्ति हो गई थी। उस त्रिलोकीनाथ बालक के जन्म के बाद उनका 'शान्तिनाथ' नाम रखा गया । आज शान्तिनाथ भगवान शरीर के रूप में हमारे सामने मौजूद नहीं हैं किन्तु उनके नाम में ही विश्व शान्ति का चमत्कार रहा हुआ है । यह एक उदाहरण' है । किन्तु ऐसे हजारों उदाहरण हमें मिलेंगे । ईश्वर के नाम स्मरण में अमोघ शक्ति है । समस्त रोगों की राम बाण औषधि है । ईश्वर के नाम स्मरण से हम स्वयं ईश्वर की स्थिति तक पहुंच जाते हैं । ईश्वर भक्त संसार की सबसे बडी शक्ति पर भी विजय पासकता है। इस प्रकार पूज्यश्रीने करीब डेढ घन्टे तक नामस्मरण व विश्व शान्ति पर मार्मिक प्रवचन दिया । पूज्यश्री के प्रवचन से महाराणा साहब बडे प्रसन्न हुए । महाराणा के जीवन का यह पहला प्रसंग था कि प्रजाजनों के बीच सामान्य नागरिक की तरह बैठ कर पूज्यश्री का व्याख्यान श्रवण करने का सुअवसर प्राप्त कर रहे थे । प्रजा भी महाराणा साहब को देखने के लिए बडी उत्सुक थी । व्याख्यान समाप्ति के बाद प्रजाजनों ने महाराणा साहब से भी भेट की ओर इस महान समारोह के लिए उनकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगी । सारे मेवाड में आज का दिन अपूर्व था । राजा और प्रजा का मिलन विश्वशान्ति के लिए प्रार्थना व पूज्यश्री का व्यक्तित्व यह सब मेवाड वासियों को एक चमत्कार था । इस सुवर्ण अवसर पर मेवाड के महाराणा ने सैकडों कैदियों को मुक्त किये । एवं सैकडों कैदियों को सजाएँ कम की । सैकडों बकरों को अमरिया किये । आज सारे मेवाड भर में अगता होने से लाखों जीवों को अभयदान मिला । व्याख्यान समाप्ति के बाद पूज्यश्री की जय घोष से सारा गगन मंडल उद्घोषित हो उठा । इस अवसर पर महावीर मंडल के कार्य कर्ताओंने राजा प्रजा को इस सुवर्ण अवसर को सफल करने के उपलक्ष में धन्यवाद दिया । आज के इस भव्य उत्सव को सफलता पूर्वक संचालन का सारा श्रेय महावीर मण्डल के सेक्रेटरी श्री कालूलालजी लीलवाया, मास्टर शोभालालजी मेहता श्री दुलेसिंहजी लोढा जीवनसिंहजी भण्डारी श्री अम्बालालजी बाबेल आदि सर्वस्थानकवासी सज्जनों को ही हैं । भीलमण्डली का आदर्श त्याग मेवाड सरहद के पहाडीप्रदेश में रहनेवाले पल्ली पति) श्री दलपति रणमल ‘कानो' पालवी, पूजो पालवी, जो हजारों भीलों के अधिपति है । इन्हें मालूम हुआ कि इस समय उदयपुर में बडे जैन महात्मा पधारे हुए हैं। उनके आदेश पर मेवाडाधिपति ने सारे मेवाड में अगता पलवाया और विश्वशाति के लिए ॐ शान्ति की प्रार्थना करवाई । जिसमें स्वयं मेवाडाधिपति भी सम्मिलित हुए थे । ऐसे महात्मा के हमें भी दर्शन करना चाहिये और उनके उपदेश को सुनना चाहिये । ऐसा विचार कर उन्होंने अपने समस्त भील प्रजा जनों को एकत्र होने का आदेश दिया । तदनुसार हजारों की संख्या में भोल एकत्र हुए और पूज्यश्री के दर्शन के लिए पैदल ही उदयपुर की ओर चल पडे । मार्ग में जहां जहां भीलों की वस्ती आती थी वे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy