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यों में ब्रह्मचर्य व्रत रखने का प्रण लिया । तथा प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमरिया करने का व्रत लिया । सोढा सरदार जोधसिंहजी सेरसिंहजी बिंदराजजी तखतसिंहजी खुसालसिंहजी आदि अनेक ठाकोर सरदारों ने प्रत्येक महिने की पांच तिथियों में दारु मांस के सेवन का त्याग किया । एवं श्रावण भाद्रपदमास में सम्पूर्ण जीवहिंसा दारू मांस का त्याग कर दिया । अन्य कुछ रजपूत सरदारों ने खरगोश तीतर हिरण मारने का त्याग किया । सिंध देश की सिमा पर स्थित राणाजी की हवेली निवासी कुंवरसिंहजी राठोड ने सदा के लिए जीवहिंसा का परित्याग कर अहिंसा वादी बने । अन्य भो अनेक व्यक्तियों ने विविध त्याग ग्रहण कर अपनी त्याग भावना का परिचय दिया । जालुजोचानरों कि तरह यहां भी सपों का उपद्रव रहा । यहां से करीब दोसौ मील के लम्बे मार्ग में सर्प ही सर्प दृष्ठि गोचर होते हैं । सन्तों के तप त्याग के प्रभाव से किसी को भी सर्प ने मुनिराजों को कष्ट नहीं दिया । हमारे चरितनायकजी सर्वत्र अहिंसा धर्म की महिमा का प्रचार करते हुए निरन्तर आगे बढ रहे थे। परचेजिवेरी से आप २९ मई को विहार कर नवाछोर पधारे ।
यहां भी आपका प्रवचन हुआ । प्रवचन से प्रभावित हो नूरखा नामक मुसलमान ने सदा के लिए जीवहिंसा और मांस सेवन का त्याग किया । और सदा के लिए प्रति वर्ष एक-एक बकरा अमर करने का प्रण लिया । पेठवान वाएतु निवासी रुगाजी ने भी दारू, मांस का सदा के लिए त्याग किया ।
यहां से ३१ मई को विहार कर आप ९ मील पर स्थित हसिसर नामक गांव में पधारे। स्टेशन मास्टर ने आप का स्वागत किया । और उतर ने के लिए आपको अपनी जगह दी । आहार पानी के बाद आपका जाहिर प्रवचन रखा गया । आस पास के सेकडों व्यक्ति आपके प्रवचन में उपस्थित हुए। आप ने मानव धर्म पर प्रवचन दिया। आपके प्रवचन से प्रभावित होकर स्टेशन मास्टर सामर निवासी भवानी शंकरजी दाहिमा ब्राह्मणने एवं असिस्टेन्ड मास्टर विशनलालजी कायस्थ ने अष्ठमी एकादशी चतुर्दशी अमावस्या एवं पूर्णिमा को पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का नियम लिया और लीलोती न खाने की प्रतिज्ञा की । इसके अतिरिक्त व्याख्यान में उपस्थित अनेक व्यक्तियों ने दारु मांस जीवहिंसा जुआ, परस्त्रीगमन आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया । कुछ सिन्धी मुसलमानों ने भी जीवहिंसा व शराब पीने का एवं मांस खाने का नियम लिया । रात्रि निवास के बाद आपने प्रातः विहार कर दिया और मुनि मंडलि के साथ ७ सात मील का विहार कर आप धोरानारा पधारे । यहां भी अनेकों व्यक्तियों ने दारु मांस आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया । अनेकों ने पांच तिथि में रात्रि भोजन न करने की प्रतिज्ञा की। स्टेशन मास्टर अलिहेदरखा सैयद में महाराज श्री के उपदेश से साल में ६ महिने तक गोस्त खाने का त्याग किया और बकरे की कुर्बानी न करने की प्रतिज्ञा की ।
सिस्टेंड मास्टर पोकरमलजी दरजी. टिकीट बाब रूपरामजी तारबाबू मुकन्दवल्भजी. गोविन्दलालजी कायस्थ आदि ने ग्यारस चतुर्दशी, अमावस्या पूनम को ब्रह्मचर्य व्रत रखने का प्रण किया । चोकीदार रामसिंह राजपूत ने भी जीवहिंसा, मांस सेवन एवं शराब पीने का सर्वथा परित्याग किया । तथा अ व्यक्तियों ने भी त्याग ग्रहण कर महाराजश्री के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त की। यहां से आप ६ मील का विहार कर हिरल पधारे । यहां के स्टेशन मास्टर रतनलालजी ने एवं उनकी पत्नी ने पांचों तिथियों में ब्रह्मचर्य पालने का नियम लिया । तथा हरी वनस्पति तथा रात्रि भोजन का भी त्याग किया । निसार मोहम्मद नामक एक मुसलमान ने एवं उसकी पत्नी ने महिने में १५ दिन मांस खाने का त्याग किया । और अपने हाथ से जीव नहि मारने का प्रण किया ।
यहा से ता० २ जून को विहार कर आप अपनी मुनिमण्डली के साथ पीथोरी पधारे । यहां स्टेशन पर आप ठहरे । यहां के स्टेशन मास्टर अब्दुलसीखांजो मुहम्मदअसरफ आप के महान उपदेश से बडे प्रभावित हुए । मांस खाने का एवं जीवहिंसा करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । अन्य भी तार बाबू तेजरामजी, श्री
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