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________________ जैनधर्मदर्शन और नीतिशास्त्र मूलतः आध्यात्मिक जीवन-मूल्यों की बात करते हैं। फिर भी, वे आदर्शों को निरा आदर्श न रखकर जीवन में व्यवहार्य भी बताना चाहते हैं। जैनधर्मदर्शन की अनेकान्त जीवनदृष्टि यह बताती है कि हम आदर्शों को जीवन में जीकर दिखा सकते हैं। अतः प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में जैनधर्मदर्शन के तप-त्याग के जीवन-मूल्यों को व्यवहार के समायोजन की दृष्टि से ही रखा गया है। यद्यपि जैनदर्शन निवृत्तिपरक है, तथापि वह प्रवृत्ति की पूर्ण उपेक्षा नहीं करता। वह निवृत्तिमूलक प्रवृत्ति की बात करता है। जीवन-प्रबन्धन भोग की मर्यादाओं का सीमांकन करके यही बताता है कि हम किस प्रकार का जीवन जिएँ, जिससे हम आध्यात्मिक विकास की ऊँचाइयों को स्पर्श कर सकें। इसीलिए हमें जहाँ एक ओर जीवन के महत्त्व को समझना होगा, वहीं दूसरी ओर जीवन के प्रबन्धन की महत्ता को भी स्वीकार करना होगा। आज का युग प्रबन्धन का युग है। प्रबन्धन को जीवन में एक स्थान अवश्य मिला है, किन्तु हमें यह कहते हुए दुःख होता है कि हमारे समक्ष प्रबन्धन का लक्ष्य मात्र वासनात्मक जीवन-मूल्यों की सम्पूर्ति तक ही सीमित हो गया है। आज जीवन में अर्थ और काम प्रमुख बन गए हैं तथा धर्म और मोक्ष गौण हो गए हैं। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का उद्देश्य अर्थ और काम को धर्म और अध्यात्म के जीवन-मूल्यों से समन्वित करना ही रहा है। इसीलिए हमने प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में जीवन के सभी प्रमुख आयामों को समाहित करने का प्रयत्न किया है। यद्यपि जीवन एक प्रक्रिया है और वह सदैव परिवर्तनशील है, फिर भी हमने यह प्रयत्न अवश्य किया है कि वर्तमान प्रसंगों में जीवन के व्यवहार का किस प्रकार से प्रबन्धन किया जाए कि व्यक्ति जीवन के सभी पक्षों का सम्यक् मूल्यांकन एवं परिष्करण करता हुआ आत्मतोष का वरण कर सके। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में हमने जीवन-प्रबन्धन के विविध आयामों को समाहित करते हुए उन्हें विविध क्षेत्रों में विभाजित किया है, जैसे - शिक्षा प्रबन्धन, समय-प्रबन्धन, शरीर–प्रबन्धन, अभिव्यक्ति(वाणी)-प्रबन्धन, तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन, पर्यावरण-प्रबन्धन, समाज-प्रबन्धन, अर्थ-प्रबन्धन, भोगोपभोग-प्रबन्धन, धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन और आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन। इस प्रकार जीवन के सभी पक्षों के सम्यक् प्रबन्धन की बात इस शोध-ग्रन्थ में की गई है, इसलिए प्रकारान्तर से इसमें भारतीय जीवनशैली के चारों पक्षों - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष , जिन्हें हिन्दु-परम्परा में पुरूषार्थ चतुष्टय के रूप में जाना जाता है, को समाहित करते हुए जीवन के विविध आयामों के प्रबन्धन की बात कही है। वस्तुतः , जीवन जब तक सम्यक् रूप से प्रबन्धित नहीं होता, तब तक जीवन जीने की सार्थकता की अभिव्यक्ति नहीं होती। आगे, हम यह स्पष्ट करने का प्रयत्न करेंगे कि जीवन के इन सभी आयामों को जैन जीवनदृष्टि से इस प्रकार से प्रबन्धित किया जाए कि मानव इसी जीवन में आध्यात्मिक जीवन-मूल्य को आत्मसात् करता हुआ प्रगति की दिशा में अपने चरण बढ़ा सके। 747 अध्याय 14. जीवन-प्रबन्धन : एक साराश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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