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________________ ★ इसके प्रति अंतरंग ममत्व एवं आसक्ति किस सीमा तक है? इस प्रकार, सम्यक विश्लेषण करते हुए नियंत्रित एवं मर्यादानुकूल उपभोग करना ही उपभोग-प्रबन्धन है। इसकी विस्तृत चर्चा भोगोपभोग-प्रबन्धन विषयक अध्याय में की गई है। 4) संग्रह-प्रबन्धन सुव्यवस्थित जीवन-यापन हेतु सम्यक् संग्रह-प्रबन्धन का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इस हेतु वस्तु की संग्रहण-योग्यता (Storing Ability) का सम्यक विश्लेषण एवं निर्णय करना आवश्यक है। अक्सर संग्रह-प्रबन्धन के अभाव में व्यक्ति की संग्रह-वृत्ति पर उचित रोक नहीं लग पाती। व्यक्ति भविष्य के प्रति अतिचिन्तित, अतिभयभीत एवं अतिसंवेदनशील होता है। अतः वह संग्रह की वास्तविक आवश्यकता का निष्पक्ष विश्लेषण भी नहीं कर पाता। इससे वस्तुओं का संग्रह सतत बढ़ता जाता है। इस संग्रहवृत्ति के क्या दुष्परिणाम होते हैं, इसका वर्णन आचारांग में इस प्रकार है – व्यक्ति धनसंग्रह के लिए दूसरों के अहित को भी अनदेखा करके येन-केन-प्रकारेण धन एकत्र करता रहता है, परन्तु यह धन कभी स्थिर नहीं रहता, कभी परिजन इसे बाँटकर खा जाते हैं, तो कभी राजा (वर्तमान में सरकार) कर लगाकर वसूल लेता है, कभी चोर-डाकू इसे लूट लेते हैं, तो कभी व्यापारादि में घाटा होने से इसका नाश हो जाता है या कभी घर में आग लग जाने से धन-सम्पत्ति जलकर खाक हो जाती है, इस तरह अनेक प्रकार से धन-सम्पत्ति का विनाश हो जाता है।199 संग्रह का यह अतिरेक ही व्यक्ति की प्रसन्नता एवं शान्ति को नष्ट कर उसके श्रम, प्रपंचों, व्यस्तताओं, कष्टों एवं त्रस्तताओं को बहुत अधिक बढ़ा देता है। यही मृत्यु-शय्या पर पड़े-पड़े व्यक्ति तक को शान्त नहीं होने देता। इससे न केवल भाव, बल्कि भव भी बिगड़ जाते हैं। साथ ही, काषायिक भावों में जीने से निकृष्ट कर्मों का संचय भी होता रहता है। 200 कहा भी गया है कि यह लोभ मजीठे के रंग के समान अतिगाढ़ होता है, जो जीव को नरकगति की ओर ले जाता है।201 यहाँ तक कि संचित धन को तो दूसरे हड़प लेते हैं, जबकि संचित कर्मों का फल तो स्वयं को ही भोगना पड़ता है।202 अतः संग्रह-प्रबन्धन करके संग्रह के अतिरेक की समुचित रोकथाम करना अत्यावश्यक है। व्यक्ति को चाहिए कि वह आवश्यकतानुसार ही उचित संग्रह करे, जिससे भविष्य की व्यर्थ चिन्ताओं में फँसकर उसकी वर्तमान की शान्ति और प्रसन्नता भंग न हो। संग्रह-प्रबन्धन का यह सिद्धान्त है कि किसी भी वस्तु का अकारण संग्रह नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को यह विचारना चाहिए कि वस्तु के संग्रह की आवश्यकता वास्तविक है अथवा काल्पनिक। वस्तु के संग्रह सम्बन्धी कुछ अस्वाभाविक कारण इस प्रकार होते हैं - ★ वस्तु का संग्रह करने का शौक। 591 अध्याय 10: अर्थ-प्रबन्धन 63 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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