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________________ 40) किसी की रकम या धरोहर को न तो हड़पना और न ही कम देना। 41) न्यायाधीश या संघ के समक्ष झूठी गवाही नहीं देना। 42) परिवार या समाज में किसी भी व्यक्ति पर झूठा दोषारोपण नहीं करना। 43) सुनी-सुनाई बात के आधार पर किसी के भी प्रति गलत धारणा नहीं बनाना, क्योंकि जब आँखों देखी बात भी असत्य हो सकती है, तो सुनी-सुनाई बात का क्या विश्वास? 44) किसी की हँसी नहीं उड़ाना और न ही किसी को ताना देना। कहा भी गया है – 'रोग की ___जड़ खाँसी और झगड़े की जड़ हाँसी'। 45) किसी की गुप्त बात को अन्य के सामने प्रकट नहीं करना। 46) पति-पत्नी हों, तो एक-दूसरे की गुप्त बातें अन्य को नहीं बताना, अन्यथा कुटुम्ब में वैमनस्य और बाहर में बदनामी होती है। 47) किसी को भी नाप-तौल की गड़बड़ी, चालाकीपूर्ण व्यापार आदि समाज विपरीत समझाईश नहीं देना। 48) झूठे दस्तावेज , जाली लेख, नकली बिल , झूठी बिल्टी, नकली नोट आदि गैर-कानूनी आचरण नहीं करना। 49) चोरी नहीं करना और न ही चोरी की वस्तु खरीदना। 50) तस्करी, सेंध मारना आदि अनुचित कार्य न करना और न ही करने की प्रेरणा देना। 51) राज्य के नीति-नियमों के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करना। 52) सरकार को उचित टैक्स चुकाना और ग्राहक से उचित दाम लेकर सही माल बेचना। 53) परस्त्री अथवा परपुरूष से यौन सम्बन्ध नहीं करना अन्यथा परिवार में कलह एवं लोक में बदनामी होती है। 54) विवाह के पूर्व किसी भी स्त्री या पुरूष के साथ असामाजिक व्यवहार (अनंगक्रीड़ादि) नहीं करना। 55) विवाह के पश्चात् स्वस्त्री अथवा स्वपुरूष में सन्तोष रखना। 56) अर्जित सम्पत्ति में सन्तोष रखना और जमीन-जायदाद आदि के निमित्त क्लेश-कलह नहीं करना। 57) भोगोपभोग के साधनों पर अपना एकाधिकार नहीं जमाना, अपितु समाज के दीन-दुःखी जीवों ___पर भी अनुकंपा करना, ताकि सामाजिक विषमता नियंत्रित हो सके। 58) किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना, जो हमें अपने लिए पसन्द न हो।" 59) सबको समान दृष्टि से देखना। 60) सबके प्रति कुटुम्बवत् व्यवहार करना, किसी को भी अपना शत्रु नहीं मानना। यह स्मरण रखना कि - 521 अध्याय 9: समाज-प्रबन्धन 31 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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