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अध्याय 9
समाज-प्रबन्धन (Social Management)
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9.1 समाज का स्वरूप एवं समाज का महत्त्व 9.2 सामाजिक संरचना के आधार पर समाज के प्रकार 9.3 सामाजिक अव्यवस्था के दुष्परिणाम 9.4 जैनआचारमीमांसा के आधार पर समाज-प्रबन्धन
9.4.1 समाज-प्रबन्धन : एक परिचय 9.4.2 समाज-प्रबन्धन का मूल उद्देश्य 9.4.3 जैनआचारमीमांसा के आधार पर समाज-प्रबन्धन का सैद्धान्तिक-पक्ष
(1) सामाजिक चेतना का सम्यक् विकास होना (2) मनोवृत्ति की निर्मलता एवं सामाजिक-प्रबन्धन (3) सम्यग्दर्शन एवं सामाजिक-प्रबन्धन (4) सद्भावनाएँ एवं सामाजिक-प्रबन्धन (5) अनेकान्त एवं सामाजिक-प्रबन्धन (6) स्वार्थ, परार्थ एवं परमार्थ का पारस्परिक सामंजस्य और सामाजिक-प्रबन्धन (7) सामाजिक जीवन-धर्म एवं सामाजिक-प्रबन्धन (8) काम एवं अर्थ पर नियन्त्रण और सामाजिक-प्रबन्धन
(9) संविभाजन एवं सामाजिक-प्रबन्धन 9.5 जैनआचारमीमांसा में समाज-प्रबन्धन के प्रायोगिक पक्ष 9.6 निष्कर्ष 9.7 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment : A questionnaire)
सन्दर्भसूची
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