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अध्याय 1 जीवन-प्रबन्धन का पथ (The Path of Life Management)
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1.1 मंगलाचरण 1.2 जीवन-प्रबन्धन के सन्दर्भ में जीवन का स्वरूप एवं मानव-जीवन में प्रबन्धन की योग्यता
1.2.1 जीवन का अर्थ 1.2.2 जीवन के अंग 1.2.3 जीवन का लक्षण 1.2.4 जीवन के आयाम
1.2.5 जीवन के विविध रूप एवं मानव-जीवन में प्रबन्धन की योग्यता 1.3 जीवन-प्रबन्धन के सन्दर्भ में जीवन की विविध शैलियाँ
1.3.1 जीवनशैली का अर्थ एवं अवधारणा
1.3.2 जीवन की विविध शैलियाँ 1.4 जीवन-प्रबन्धन के सन्दर्भ में प्रबन्धन का मूल स्वरूप एवं जीवन में प्रबन्धन की उपयोगिता
1.4.1 प्रबन्धन का सामान्य परिचय 1.4.2 प्रबन्धन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 1.4.3 प्रबन्धन की आधुनिक अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ 1.4.4 प्रबन्धन की अवधारणाओं एवं परिभाषाओं में विविधताओं के मूल कारण 1.4.5 प्रबन्धकीय विचारधाराओं की कमियों से उभरने के मापदण्ड 1.4.6 जैनदर्शन के आधार पर प्रबन्धन की अवधारणा एवं परिभाषा 1.4.7 प्रबन्धन की विशेषताएँ 1.4.8 प्रबन्धन के कार्य 1.4.9 प्रबन्धन की प्रकृति 1.4.10 प्रबन्धन के सामाजिक उत्तरदायित्व 1.4.11 प्रबन्धन के सिद्धान्त
1.4.12 प्रबन्धन का क्षेत्र 1.5 जीवन-प्रबन्धन की मौलिक अवधारणा एवं स्वरूप
1.5.1 जीवन-प्रबन्धन की आवश्यकता 1.5.2 जीवन-प्रबन्धन का महत्त्व 1.5.3 जीवन-प्रबन्धन के उद्देश्य
1.5.4 जीवन-प्रबन्धन के साधक एवं बाधक तत्त्व 1.6 जीवन-प्रबन्धन की मूलभूत प्रणाली 1.7 जीवन-प्रबन्धन में भारतीय-दर्शन के पुरूषार्थ-चतुष्टय
1.7.1 पुरूषार्थ क्या है? 1.7.2 पुरूषार्थ चतुष्टय : सामान्य परिभाषा
1.7.3 वर्तमान विसंगति : मुख्य कारण 1.8 जीवन-प्रबन्धन के विविध आयाम
1.8.1 जीवन-प्रबन्धन के मुख्य विभाग
1.8.2 जीवन-प्रबन्धन के आयाम 1.9 निष्कर्ष सन्दर्भसूची
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