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________________ आवश्यकता पड़ेगी। आज भी यह परम्परा जैनाचार में प्रचलित है। 9) जल पीने के लिए बारम्बार बदल-बदल कर ग्लास का उपयोग करने के बजाय घर का प्रत्येक सदस्य अपनी-अपनी नियत ग्लास का प्रयोग करे। 10) जल के रिसाव को रोकें, क्योंकि प्रति सैकण्ड नल से टपकती जल-बूंद से एक दिन में करीब ____ 17 लीटर जल का अपव्यय होता है। 11) पानी की टंकी में पानी पूर्ण भरने से पूर्व मोटर–पम्प बन्द करें (Stop overflow of water)। 12) वाहन धोते समय न्यूनतम पानी का प्रयोग करें। इस हेतु नली के मुँह पर बन्द-चालू करने की ___ सुविधा होनी आवश्यक है। 13) बगीचे में कृत्रिम फव्वारों (Artificial fountains) का प्रयोग न करें। 14) कूलर का प्रयोग न करने का प्रयत्न करें। 15) पानी का पुनरूपयोग अधिकाधिक करने का प्रयास करें, जैसे – कपड़े, बर्तन या अन्य सामग्री धोने के बाद बचे हुए जल को निथारकर उससे आँगन की सफाई करना, पोछा लगाना, गाड़ी धोना, छिड़काव करना आदि। 16) होली न खेलें। 17) अनावश्यक रंग-रोगन , साफ-सफाई न करें। 18) शरीर पर विलेपन सामग्रियाँ (शृंगार प्रसाधनों) का प्रयोग टालने का प्रयत्न करें। इससे न केवल चर्म-रोगों से मुक्ति मिलेगी, बल्कि स्नान करते हुए पानी का प्रदूषण भी नहीं बढ़ेगा एवं साबुन का उपयोग भी कम हो सकेगा। यह ध्यान देने योग्य है कि ये रासायनिक पदार्थ चमड़ी पर विकृत प्रभाव भी डालते हैं। 19) कुएँ, टंकी, बाल्टी आदि खुले न छोड़ें। 20) नदी, तालाब, जलाशय आदि में अपशिष्ट पदार्थ, जैसे – कूड़ा-कर्कट, पॉलिथीन आदि न डालें। 21) नदी, तालाब, जलाशय आदि के किनारे बैठकर उसमें मिट्टी के ढेले, वृक्ष की टहनी, कंकड़ आदि न फेंकें। 22) बर्फीले पर्यटन क्षेत्रों में घूमने-फिरने पर प्रदूषण न फैलाएँ। 23) सामुद्रिक जहाजों का अनावश्यक प्रयोग न करें। 24) नदी, तालाब आदि में मनोरंजनार्थ बोटिंग न करें। 25) मत्स्य आदि जलचर प्राणियों का व्यापार न करें। इससे न केवल जैव-विविधता को संरक्षण मिलेगा, अपितु जल में अनावश्यक प्रदूषण भी नहीं फैलेगा। 26) स्वीमिंग पूल, वॉटर-पार्क आदि में जाकर नहाने से शारीरिक मल-मूत्र, पसीने आदि से अनावश्यक रूप से जल-प्रदूषित होता है, अतः इनका उपयोग न करें। 27) औद्योगिक या घरेलु अपशिष्टों में कई जहरीले रासायनिक पदार्थ होते हैं, अतः इन्हें जलाशय 42 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 466 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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