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________________ होने से मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। जैनाचार्यों ने धूम्रोत्पादक व्यवसायों का जो निषेध किया है, उसकी सार्थकता वर्तमान में आसानी से समझी जा सकती है। (3) ओजोन परत क्षयीकरण (Ozone layer depletion) 51 – वायुमण्डल में नाइट्रिक-ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) जैसी प्रदूषक गैसों की उपस्थिति से सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से रक्षा करने वाली ओजोन परत में छेद हो गया है। सामान्यतया इन गैसों की उत्पत्ति रेफ्रीजरेटर, वातानुकूलक (A.C.), प्लास्टिक, फार्मेसी, परफ्यूम, फोम, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उद्योगों में होता है। साथ ही परमाणु विस्फोटों से निकली गैसें, परमाणु केन्द्रों से उत्सर्जित विकिरणें, सुपरसॉनिक विमान के धुएँ से निकली नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि भी ओजोन परत के क्षय के लिए जिम्मेदार हैं। अतः जैनाचार्यों ने मर्यादित भोगोपभोग करने का जो निर्देश दिया है, वह अर्थपूर्ण है। ओजोन क्षरण के परिणामस्वरूप लाल धब्बे , त्वचा कैंसर और मोतियाबिन्द आदि रोग होते हैं। अनुमान है कि एक प्रतिशत ओजोन परत कम होने पर एक लाख लोगों को मोतियाबिन्द होने की सम्भावना निर्मित हो जाती है। मनुष्य के अतिरिक्त पेड़-पौधों और जन्तुओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। (4) वैश्विक तपन (Global Warming) – यह भी विश्व की ज्वलन्त पर्यावरणीय समस्या है, जिससे पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में निरन्तर अभिवृद्धि हो रही है। मानव-निर्मित गैसों, जैसे CO., CFC, मिथेन, ओजोन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि के द्वारा पृथ्वी से परावर्तित (Reflected) होने वाली दीर्घतरंगी अवरक्त किरणों (Long wavelength Infra red rays) को रोकने से पृथ्वी की उष्मा कैद हो जाती है, इससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता जाता है। वैश्विक-तपन के परिणामस्वरूप जलवायु और मौसम-चक्र में तो परिवर्तन आ ही रहा है, समुद्री जल-स्तर में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। सन् 2100 तक 60 से.मी. से अधिक वृद्धि की आशंका है। इससे मालदीव जैसे कई तटीय क्षेत्र डूब जाएँगे। इतना ही नहीं, ग्लेशियरों के पिघलने से बाढ़ की आवृत्ति भी बढ़ेगी। कुल मिलाकर, ‘महाप्रलय' और 'हिमयुग' के आने की सम्भावना है। यह सोचनीय तथ्य है कि प्राच्य धर्म-दर्शनों, जैसे - जैनदर्शन की शिक्षाओं की उपेक्षा करके मानव विकास के बजाय विनाश के मार्ग पर तीव्र गति से बढ़ रहा है। (5) मानव स्वास्थ्य – वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक है। यह मुख्य रूप से श्वसन-तन्त्र को प्रभावित करता है, जिससे दमा, गला-दर्द, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, फुफ्फुस का कैंसर आदि रोग हो जाते हैं। वाहन से निकले धुएँ में उपस्थित सीसा (Lead) शरीर में पहुंचकर यकृत (Liver) तथा गुर्दो (Kidneys) को क्षति पहुँचाता है एवं बच्चों में मस्तिष्क-विकार आदि प्रभाव 14 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 438 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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