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होना।
★ सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण (Socio-cultural Environment) में विसंगतियों, जैसे हिंसा, झूठ, कलह आदि की अधिकता इत्यादि ।
स्पष्ट है कि आधुनिक मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में असामान्य अर्थात् अप्रबन्धित मनोव्यवहार के अनेक कारण होते हैं ।
कुल मिलाकर, जैनदर्शन एवं आधुनिक मनोविज्ञान दोनों में ही शारीरिक एवं परिस्थितिजन्य कारकों को मानसिक विकारों का बहिरंग कारण बताया गया है। किन्तु जैनदर्शन की यह मान्यता है कि इन बहिरंग कारणों से प्रभावित होने या न होने में व्यक्ति स्वतंत्र है। बहिरंग कारणों की अनुभूति इन्द्रियाश्रित होती है, अतः व्यक्ति परतंत्र है, किन्तु प्रतिक्रिया आत्माश्रित होती है, अतः वह स्वतंत्र भी है। यह स्वतंत्रता ही उसकी प्रबन्धन सम्बन्धी योग्यता है ।
7.5.2 मानसिक विकारों के अंतरंग कारण
आधुनिक मनोविज्ञान में सर सिग्मण्ड फ्रायड (Sigmund Freud ) पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं, जिन्होंने मानसिक रोगों के अंतरंग (मनोवैज्ञानिक) कारकों को प्रतिपादित किया है। उनकी परिकल्पना (Hypothesis) के अनुसार, मन के तीन स्तर ( विभाग) हैं। प्रथम चेतन मन (Conscious mind) है, जिसमें वे सभी अनुभव एवं संवेदनाएँ होती हैं, जिनका सम्बन्ध वर्त्तमान से है। द्वितीय अर्द्धचेतन या अवचेतन मन (Subconscious mind) है, जिसमें वे इच्छाएँ, विचार, भाव आदि होते हैं, जो वर्त्तमान में प्रकट अनुभव में नहीं आते, किन्तु थोड़ा प्रयत्न करने पर चेतन मन में आ जाते हैं। तृतीय अचेतन मन (Unconsious mind) है, जिसमें वे दमित इच्छाएँ होती हैं, जो जातितौर पर वासनात्मक होती हैं एवं जिनका स्वरूप कामुक (Sexual), असामाजिक (Antisocial), अनैतिक (Immoral) तथा घृणित (Hateful) होता है ।
फ्रायड एवं परवर्ती मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, अचेतन मन सबसे महत्त्वपूर्ण है तथा व्यक्ति के व्यवहार पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। यह मन का सबसे बड़ा भाग ( 9 / 10 ) होता है तथा इसमें उन इच्छाओं का अस्तित्व होता है, जिन्हें चेतन से हटाकर अचेतन - मन में दमित (Repressed ) कर दिया जाता है । यह मन व्यक्ति की नियंत्रण रेखा से बाहर होता है, क्योंकि इसके बारे में वह पूर्णतः अनभिज्ञ होता है। इसमें विद्यमान इच्छाएँ हमेशा अपनी अभिव्यक्ति या सन्तुष्टि चाहती हैं और इस हेतु काफी क्रियाशील (Active) रहती हैं, किन्तु व्यक्ति के विवेक (Ego ) के कड़े प्रतिबन्ध के कारण ये चेतन - मन में नहीं आ पाती। फलस्वरूप अपना वेष बदलकर छद्म रूप स्वप्नों अथवा
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दैनिक जीवन की भूलों के रूप में अभिव्यक्त होती रहती हैं । '
इस प्रकार, आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार, तनाव एवं मानसिक विकारों का अंतरंग कारण मुख्यतया अचेतन - मन ही है, जो अप्रकट रूप से अपना कार्य करता रहता है। यह ज्ञातव्य है कि
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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