________________
किया है, जैसे – रोष में आकर सोमिल ब्राह्मण ने गजसुकुमाल मुनि को मार डाला, किन्तु बाद में कृष्ण महाराजा (गजसुकुमाल मुनि के सांसारिक ज्येष्ठ भ्राता) के दण्ड से भयभीत होकर वह विक्षिप्त दशा में पहुँचकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।132 शातवहन राजा का दृष्टान्त भी प्रसिद्ध है, जिसे एक साथ राज्यविजय, पुत्रोत्पत्ति एवं विपुलनिधि-प्राप्ति के समाचार मिलने से अत्यधिक हर्ष होने लगा, इस हर्षातिरेक में उसका मानसिक सन्तुलन भंग हो गया और वह शय्या पीटते, खम्भे गिराते, दीवार तोड़ते एवं अनावश्यक प्रलाप करते हुए दीप्तमन वाला हो गया। 193 (4) दुष्परिणामों की चतुर्थ अवस्था
मानसिक विकारों के दुष्परिणामों की चौथी अवस्था है - सामाजिक विघटन। मानसिक विकार पहले व्यक्ति के व्यक्तित्व का विघटन करते हैं और यदि उन पर उचित नियंत्रण न रखा जाए, तो ये पारिवारिक, सामुदायिक एवं वैश्विक स्तर की समस्याएँ भी पैदा कर देते हैं। आज बढ़ता हुआ क्लेश-कलह, मन-मुटाव आदि इसी का परिणाम है। इतना ही नहीं अपहरण, हत्या, बलात्कार, आतंकवाद , आत्महत्या, भ्रष्टाचार, हड़ताल, तोड़-फोड़, दंगे-फसाद, लूट-पाट, युद्ध आदि बढ़ती हुई असामाजिक घटनाएँ भी दूषित मन से ही उपजती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र में कहा भी गया है - युद्ध पहले मस्तिष्क (मन) से लड़ा जाता है और फिर युद्धक्षेत्र में।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि मन का नकारात्मक उपयोग ही महाविनाश का कारण है। स्थानांगसूत्र में इसीलिए दुष्प्रयुक्त मन को 'शस्त्र' की संज्ञा दी गई है।15।
=====4.>=====
399
अध्याय 7 : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
37
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org