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(घ) सुलीन मन - यह मन की पूर्ण प्रबन्धित अवस्था है, जिसमें संकल्प-विकल्प एवं मानसिक वृत्तियों का क्षय हो जाता है। यह परमानन्द की अवस्था है, क्योंकि इसमें सभी वासनाएँ नष्ट हो जाती हैं। इसे निरुद्धावस्था भी कहते हैं।
मन-प्रबन्धक को चाहिए कि वह इन सभी मानसिक अवस्थाओं का सम्यक् परिज्ञान करके उत्तरोत्तर विकास की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील बने।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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