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________________ 18) विदा होते समय अथवा विदाई देते समय अभिवादन करना नहीं भूलना, जैसे - i) पुनः मिलेंगे। See you ii) कृपया पुनः अवश्य पधारिएगा। Please do come again / Please visit again iii) अलविदा Bye-bye/Good bye 19) प्रसंगानुकूल प्रेरक कथन का प्रयोग कर दूसरों के लिए शुभकामना प्रेषित कर उनका मनोबल बढ़ाना, जैसे - i) खूब-खूब बधाई हो! Many many congratulations! ii) दीर्घायु हो! May you live long! ii) खुश रहो! Be happy! iv) खूब उन्नति करो! May you progress a lot! v) आपका भाग्य उत्तम हो! Best of luck/Good luck! vi) स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिएगा। Please take care of your health. vii) माता-पिता का ध्यान रखना। Please look after your parents. viii) सफलता अर्जित करो। Be successful. 20) सम्बोधनवाची शब्दों का सोच-विचारकर उचित प्रयोग करना एवं अनुचित प्रयोग से बचना, भले ही वह सत्य क्यों न हो, जैसे – अन्धे को अन्धा, बहरे को बहरा, पंगु को लूला-लंगड़ा, भिखारी को भिखारी, नौकर को नौकर, पागल को पागल, कृष्णवर्णीय को कालिया, लम्बे को लम्बू आदि नहीं कहना। कहा भी गया है17 - दीना-न्ध-पंगु-बधिरा नोपहास्या कदाचन अर्थात् निर्धन, अन्ध, पंगु तथा बधिर मनुष्यों का उपहास नहीं करना चाहिए। 21) किसी की निन्दा कर अपने समय, सामर्थ्य, संस्कार एवं समझ का दुरुपयोग नहीं करना। 22) कलह करने से बचना अथवा न बचा जाए, तो कलहोत्पादक वातावरण से दूर हो जाना। 23) अपनी छवि निखारने अथवा दूसरे की छवि बिगाड़ने के लिए उसकी गुप्त बातों को प्रकट नहीं करना। 24) स्वार्थपूर्ति के लिए किसी पर भी झूठा कलंक एवं दोषारोपण नहीं करना। 25) देश-विदेश की अनावश्यक चर्चाओं से बचना। 26) विजातीय स्त्री या पुरूष के सौन्दर्य, शृंगार, प्रसाधन, परिधान, चाल-ढाल एवं हाव-भाव की ___ अनावश्यक चर्चाओं में अपने संस्कारों का दिवाला नहीं निकालना। 27) भोजन सम्बन्धी अनावश्यक चर्चाओं में अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ नहीं गँवाना। 28) बात-बात में अपने अतीत के संस्मरणों का उल्लेख करने की आदत से बचना। 29) बात-बात में अपनी आत्मप्रशंसा एवं परनिन्दा करने की आदत का त्याग करना। 355 अध्याय 6 : अभिव्यक्ति-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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