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________________ अपने प्रयोजन की सिद्धि कर लेता है। 14 डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार, वक्ता के अभिप्राय अथवा प्रसंग के अनुरूप शब्द के वाच्यार्थ को ग्रहण करने के लिए निक्षेप-सिद्धान्त का बोध होना आवश्यक है। एक ही शब्द अथवा कथन प्रसंगानुसार अपने चार अर्थों को प्रस्तुत करता है। 'राजा' शब्द कभी राजा नामधारी व्यक्ति का वाचक होता है, तो कभी राजा का अभिनय करने वाले पात्र का वाचक भी होता है। इसी प्रकार, कभी वह भी भूतकालीन राजा का वाचक होता है, तो कभी वह वर्तमान में शासन करने वाले व्यक्ति का वाचक भी होता है। निक्षेप का सिद्धान्त यह बताता है कि हमें किसी शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण उसके कथन एवं प्रसंग के अनुरूप ही करना चाहिए अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। निक्षेप का सिद्धान्त शब्द के वाच्यार्थ के सम्यक निर्धारण का सिद्धान्त है, जो कि जैन-दार्शनिकों की अपनी एक विशेषता है।15 इस प्रकार, नय एवं निक्षेप के सिद्धान्त श्रोता एवं वक्ता के मध्य सम्यक् सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनुपम साधन है। जैनाचार्यों ने स्पष्ट कहा है - श्रोता को चाहिए कि वह वाच्यार्थ का सम्यक् निर्धारण करने के लिए शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ एवं भावार्थ – इन पाँचों का सम्यक् प्रयोग करे (देखें अध्याय 03)। 216 अर्थ का उचित विश्लेषण करने के पश्चात् ही श्रोता वक्ता की भाषिक-अभिव्यक्ति का सम्यक् अर्थ समझ सकता है। अतः श्रवणकला का विकास करना अर्थात् वक्ता के शब्द या कथन के सम्यक् अर्थ का निर्धारण करना अभिव्यक्ति-प्रबन्धन के लिए नींव के पत्थर के समान अतिमहत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार, अभिव्यक्ति-प्रबन्धन के विशिष्ट पहलुओं की विस्तृत चर्चा इस अध्याय में की गई। कहा जा सकता है कि बोलने और सुनने की कला का सम्यक् समन्वय ही अभिव्यक्ति-प्रबन्धन है। इस हेतु जैनाचार्यों द्वारा निर्दिष्ट सिद्धान्तों का अनुपालन कर व्यक्ति कथन एवं अर्थ का उचित निर्धारण करके सम्यक् सम्प्रेषण करता हुआ जीवन में शान्ति और आनन्द की चिरस्थायी प्राप्ति कर सकता है। =====4.>===== 48 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 352 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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