SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (खाचरौद), प्रो. शैलेन्द्र पाराशर, डॉ. गजेन्द्र पारख, डॉ. दिनेश राँका, डॉ. अजयकीर्ति जैन, सुश्री खान महोदया, प्रो. रवीन्द्र जैन (सभी उज्जैन), डॉ. राजेन्द्र जैन (शाजापुर), प्रो. सरिता जैन (राजगढ़), डॉ. रणजीत मालू (बाड़मेर) आदि उल्लेखनीय हैं। ये सभी धन्यवाद के पात्र हैं। प्रस्तुत शोधकार्य में प्रसिद्ध पत्रकार श्री गोपालस्वरूप माथुर का उल्लेख करना आवश्यक होगा, जिन्होंने शोध-प्रबंध का आद्योपांत अध्ययन कर अपनी विशेष टिप्पणियों के माध्यम से आलेखन को परिमार्जित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रस्तुत शोधकार्य में श्री पारस मेहता, श्री हेमन्त भण्डारी, श्री दिलीप छाजेड़, डॉ. प्रफुल्ल सुराना, श्री देवेन्द्र वनवट, श्री विकास चोपड़ा, श्री अंकित छाजेड़, श्री नवनीत सेठिया, श्री नरेश सकलेचा, श्री हर्ष भण्डारी, श्री श्रेयांस हिंगड़ एवं श्री चेतन नांदेचा (सभी खाचरौद), डॉ. नरेन्द्र धाकड़, श्री नीतिन तातेड़, श्री राजेन्द्र गाँधी, श्री लुकेश गाँधी, श्री पंकज सावनसुखा, श्री पृथ्वीराज शर्मा, श्री अमृत शाह, श्री सुरेश पीपाड़ा, श्री जयन्तीलाल राठौर, श्री रमेश पाटीदार (सभी इन्दौर), डॉ. सुनील मण्डलेचा (राजगढ़), प्रो. राजेन्द्र छजलानी, श्री रितेश नाहर (उज्जैन), श्री गोपाल श्रीश्रीमाल, श्री अरूण चपरोत, श्री हेमन्त बोथरा (सभी रतलाम), डॉ. कविता गाँधी (नागपुर), श्री राम रूसिया (वारासिवनी), श्री प्रवीण शर्मा (शाजापुर), श्री अक्षय बारिया (मुंबई) एवं श्री अनिल जैन (दुर्ग) का भी आत्मीय सहयोग रहा है। इन सभी की ज्ञानभक्ति एवं गुरूभक्ति अनुमोदनीय है। इस अध्ययन-यात्रा को पूर्ण करने में प्राच्य विद्यापीठ (शाजापुर), कुंदकुंद विद्यापीठ (इन्दौर), श्री जैन श्वेताम्बर अकादमी (इन्दौर), इन्दौर विश्वविद्यालय पुस्तकालय (इन्दौर), ज्ञान भण्डार (खाचरौद), गणेश ज्ञान भण्डार (रतलाम), श्री राजेन्द्रसूरि प्रवचन पुस्तकालय (मोहनखेड़ा) से समय-समय पर ग्रंथ उपलब्ध होते रहे. अत: मैं इन सभी संस्थाओं के व्यवस्थापकों एवं कार्यकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। प्रस्तुत शोध-प्रबंध के आलेखन को कम्प्यूटर पर टंकन करने में जिन लोगों ने पूरे मनोयोग के साथ परिश्रम किया है, मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ। साथ ही, इस शोध-प्रबंध को विश्वविद्यालय में प्रस्तुत करने हेतु प्रिंटिंग कार्य में इम्पीरियल स्कूल, खाचरौद के श्री संजय हिंगड़, श्री विनोद सिसोदिया एवं श्री नरेश नागदा के अवदान को भी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्होंने पूर्ण जागृति एवं भक्ति के साथ कार्य किया है। इस पुनीत कार्य में शाजापुर, इन्दौर, खाचरौद, रतलाम, उज्जैन, महिदपुर, सूरत आदि जैनसंघों के सदस्यों का सम्माननीय सहयोग प्राप्त हुआ, जिन्होंने मुझे अध्ययन के अनुकूल शांतिमय वातावरण के साथ-साथ समुचित व्यवस्थाएँ भी उपलब्ध कराई। प्रस्तुत शोध-प्रबंध में जिन-जिन विद्वानों एवं सम्पादकों के ग्रंथों का उपयोग हुआ है, मैं उनके प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। م م م م م م م م ع ع م ع م م می می می می می ترمیم می می می سی سی معنی میں دیتی تھیں۔ حم م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م م ه م مهم مهم مهم مهم مهم می می می कृतज्ञता-ज्ञापन For Personal & Private Use Only XXXV www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy