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________________ जीवन-प्रबन्धन के तत्व में जानें कहाँ क्या? 6 अध्याय प्रथम : जीवन-प्रबन्धन का पथ – इस अध्याय में जीवन और प्रबन्धन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए जीवन-प्रबन्धन की आवश्यकता, महत्त्व, उद्देश्य एवं साधक-बाधक तत्त्वों की चर्चा की है। साथ ही, जीवन-प्रबन्धन की मूलभूत प्रणाली और इसके मुख्य आयामों को स्पष्ट किया है। अध्याय द्वितीय : जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन-प्रबन्धन - इस अध्याय में इस बात पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है कि जैनदर्शन एवं आचारशास्त्रों में वे सारे तत्त्व निहित हैं, जिनका अनुकरण कर जीवन-प्रबन्धन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त किया जा सकता है। अध्याय तृतीय : शिक्षा-प्रबन्धन – इस अध्याय में शिक्षा के स्वरूप एवं महत्त्व को स्पष्ट करते हुए वर्तमान शिक्षाप्रणाली के गुण-दोषों की चर्चा की और यह बताने का प्रयत्न किया कि शिक्षा जीवन-विकास की नींव है और इसका सही प्रबन्धन जैनआचारमीमांसा के आधार पर उचित ढंग से किया जा सकता है। | चतुर्थ : समय-प्रबन्धन - इस अध्याय में समय के स्वरूप, विशेषता एवं महत्त्व को बताकर समय की अव्यवस्था से प्राप्त होने वाले दुष्परिणामों की चर्चा की और जैनआचारमीमांसा के आधार पर सम्यक् समय-प्रबन्धन के सूत्रों को प्रस्तुत किया है। अध्याय पंचम : शरीर-प्रबन्धन – इस अध्याय में आधुनिक एवं जैन शरीर-विज्ञान के आधार पर शरीर के स्वरूप और महत्त्व को स्पष्ट करके शरीर के अप्रबन्धन से सम्बन्धित दस प्रमुख कारकों की चर्चा की और साथ ही जैनदृष्टि के आधार पर शरीर-प्रबन्धन के पहलुओं को स्पष्ट करने का प्रयास भी किया है। अध्याय षष्ठम : अभिव्यक्ति-प्रबन्धन - इस अध्याय के प्रारम्भ में अभिव्यक्ति के स्वरूप, प्रकार एवं महत्त्व को स्पष्ट करते हुए असंयमित-भाषिक-अभिव्यक्ति के प्रयोगों को स्पष्ट किया और उनके दुष्परिणामों से बचने के लिए जैनआचारमीमांसा के आधार पर भाषिक-अभिव्यक्ति के सम्यक् प्रबन्धन के सूत्रों को दर्शाया है। अध्याय सप्तम : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन - इसके प्रारम्भ में मन के स्वरूप एवं महत्त्व को भारतीय दर्शनों और विशेष रूप से जैनदर्शन के आधार पर प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् मन के असंयम (अप्रबन्धन) के कारण उत्पन्न होने वाले तनाव एवं विविध मानसिक विकारों को भी स्पष्ट किया और अन्त में मानसिक विकारों के प्रबन्धन-सूत्रों का विश्लेषणात्मक विवेचन किया है। ، یه عده دیده می میده و به عنوں میں عمره شهید محمد محمد محمد مجید میں تھیں میں میں میں میں میں نے کی ہے ۔ و همه و همه و همه در مورد همه و رد و امو ر مریم مردم در م اسی عمومی जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व में जानें कहाँ क्या? For Personal & Private Use Only Xxxi Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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