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________________ अध्याय 6 6. 1 अभिव्यक्ति का स्वरूप 6.1.1 अभिव्यक्ति का स्वरूप प्रत्येक प्राणी अपने विचारों, सूचनाओं, भावनाओं एवं अनुभूतियों को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करता है और इस प्रकार दूसरों को अपने ज्ञान एवं अनुभूति में सहभागी बनाता है।' यह पारस्परिक सहभागिता की प्रक्रिया ही अभिव्यक्ति या संप्रेषण कहलाती है। किसी भी समुदाय या समूह को एक सूत्र में पिरोने के लिए सम्प्रेषण - व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 2 अभिव्यक्ति - प्रबन्धन (Communication Management) 305 समान । अभिव्यक्ति या संप्रेषण शब्द अंग्रेजी के Communication ( कम्युनिकेशन) शब्द का हिन्दी पर्याय है। यह लेटिन शब्द 'कम्युनिस' (Communis) से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है अतः हेन एवं हेन (1978) की दृष्टि में, संप्रेषण वह प्रक्रिया है, जिसमें दो या अधिक व्यक्ति विचारों का इस प्रकार आदान-प्रदान करते हैं कि वे प्राप्त सन्देशों का अर्थ, आशय एवं उपयोगिता को समान रूप से ग्रहण कर सकें। इस प्रकार, सफल अभिव्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि सूचना देने वाला और सूचना पाने वाला विषय-वस्तु का एक-सा अर्थ बोध प्राप्त कर सके। Jain Education International सांकेतिक और भाषिक अभिव्यक्ति यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भगवान् महावीर ने अपना उपदेश तत्कालीन जनभोग्य लोकभाषा प्राकृत में दिया, जिससे जनसामान्य को अर्थबोध सुगमता से हो सके। इसके पश्चात् जैनाचार्यों ने भी जीवों की योग्यता को आधार बनाकर उपदेश देने के विविध प्रकारों का निर्देश दिया, जैसे संक्षिप्त - रुचि वाले जीवों के लिए संक्षिप्त उपदेश एवं विस्तार - रुचि वाले जीवों के लिए विस्तृत उपदेश देने की प्रणाली, चार अनुयोगों की प्रणाली, नय - निक्षेप पद्धति इत्यादि । इससे सहज ही जैनदर्शन में सम्प्रेषण-प्रक्रिया के प्रति जागरुकता का बोध होता है। आधुनिक युग में अनेक विचारकों ने संप्रेषण को परिभाषित करने का प्रयत्न किया है, जैसे अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन - For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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