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________________ प्रबन्धन करने के साथ ही इन पक्षों का परस्पर समन्वय करना भी आवश्यक है, क्योंकि जीवन का प्रत्येक पक्ष एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इस समन्वय की प्रक्रिया में यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि एक पक्ष से दूसरे पक्ष का समन्वय करने में किसी भी पक्ष का प्रबन्धन बिगड़ न जाए। जिस प्रकार एक मोती भले ही शोभनीय और मनोहर क्यों न हो, परन्तु माला नहीं बन सकता, उसी प्रकार जीवन के किसी पक्षविशेष को महत्त्व देकर अन्यों की उपेक्षा करना भी जीवन-प्रबन्धन का उद्देश्य नहीं बन सकता। यही जीवन-प्रबन्धन के प्रस्तावित शोध का लक्ष्य भी था, जिसे प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में पूरा किया गया है। संक्षेप में कहें तो, प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में भिन्न-भिन्न जीवन-पक्षों की प्रबन्धन-प्रक्रिया को परस्पर समन्वित करने की भी चर्चा की गई है। जीवन-प्रबन्धन की उपयोगिता सार्वभौमिक, सार्वकालिक और सार्वजनिक है। यह सम्भव है कि वर्तमान युग के प्रचलित विषयों, जैसे – वित्त-प्रबन्धन (Financial Management), विपणन-प्रबन्धन (Marketing Management), मानव-संसाधन-प्रबन्धन (Human Resource Manangement), होटल-प्रबन्धन (Hotel Management) आदि की उपयोगिता किसी को हो और किसी को न भी हो, किन्तु प्रस्तुत शोध-विषय तो प्राणीमात्र से जुड़ा होने से सभी के लिए उपयोगी है। जीवन चाहे प्रवृत्तिमूलक हो या निवृत्तिमूलक, इसके प्रबन्धन की आवश्यकता सभी को है और यह निर्विवाद सत्य प्रस्तुत शोधकार्य में जीवन-प्रबन्धन के उन सभी आयामों को समाहित करने का प्रयत्न किया गया है, जो जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं, जैसे – शिक्षा-प्रबन्धन, समय-प्रबन्धन, शरीर–प्रबन्धन, अभिव्यक्ति-प्रबन्धन, तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन, पर्यावरण-प्रबन्धन, समाज-प्रबन्धन, अर्थ-प्रबन्धन, भोगोपभोग-प्रबन्धन, धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन और आध्यात्मिक-जीवन-प्रबन्धन। साथ ही, वे सूत्र भी प्रस्तुत किए हैं, जिनसे इन सभी आयामों का सम्यक् प्रबन्धन हो सके, इसीलिए प्रस्तुत शोधकार्य में मैंने प्रबन्धन के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही पक्षों का समावेश करते हुए जीवन में इनका प्रयोग किस प्रकार से किया जाए, इसकी भी चर्चा की है। इस प्रकार, जीवन को उसके समग्र रूप में सम्यक्त्तया नियोजित करने का एक यत्न प्रस्तुत शोधकार्य में किया गया है। यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति के सोचने, समझने एवं क्रियान्वयन करने का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता है और उसकी कार्यक्षमता भी सीमित होती है, फिर भी प्रस्तुत शोधकार्य में अपनी सीमित योग्यता के आधार पर मैंने जीवन के विविध आयामों के प्रबन्धन का समाहार करने का प्रयत्न किया है। मेरा यह दावा तो नहीं है कि मैं सभी पक्षों को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर पाया हूँ, क्योंकि इसमें समय और कार्य की सीमा दोनों ही मुझे प्रतिबन्धित करते रहे हैं, फिर भी यह एक ऐसा प्रयत्न है, जिसके माध्यम से जीवन जीने के विविध आयामों के प्रबन्धन की सम्यक् दिशा का निर्धारण होता है। ___ यहाँ जीवन-प्रबन्धन में जैनआचारशास्त्र को आधार बनाने का प्रयत्न इसीलिए किया गया है, क्योंकि जन-साधारण में जीवन-प्रबन्धन के लिए एक सम्यक् चेतना जाग्रत हो और वह यह समझ सके कि जैनआचारमीमांसा में भी बहुत सारे ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं, जो आधुनिक प्रबन्धनशास्त्र से प्रस्तावना For Personal & Private Use Only XXIX www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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