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________________ 5.3.5 निद्रा सम्बन्धी विसंगतियाँ यह जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व्यवहार है । यद्यपि विशिष्ट योगीजन तो निद्रा पर पूर्ण विजय भी प्राप्त कर लेते हैं, तथापि सामान्य व्यक्ति के लिए निद्रा एक अनिवार्य क्रिया है। वस्तुतः, मस्तिष्क में मौजूद ज्ञानवाही और आज्ञावाही स्नायु जब थक जाते हैं, तो उनकी गतिविधियाँ मन्दप्रायः हो जाती हैं, इसे ही निद्रा कहते हैं। थकान दूर होने पर ये स्नायु पुनः सक्रिय हो उठते हैं, जिसे जागरण कहते हैं। आज व्यक्ति की जीवनशैली अप्रबन्धित होने से निद्रा एवं जागरण की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है। अधिकांश लोग देर रात्रि तक जागते रहते हैं और फिर सुबह देर तक सोते रहते हैं । कई लोग बिस्तर पर लेट तो जाते हैं, किन्तु चिन्ता, तनाव आदि से नींद जल्दी नहीं आती, अतः करवटें ही बदलते रहते हैं। इतना ही नहीं, कई लोगों को तो नींद की दवाई लेने की आदत भी पड़ जाती है, उसके बिना नींद ही नहीं आती। कई लोगों को दिन का भोजन करते ही घण्टे -दो घण्टे सोने की आदत पड़ जाती है । बच्चों की अक्सर यह शिकायत होती है कि उनकी पिताजी से मुलाकात सिर्फ रविवार को ही हो पाती है, क्योंकि बाकी दिनों में जब पिताजी रात्रि में घर लौटते हैं, तब तक बच्चे सो चुके होते हैं और जब पिताजी जागते हैं, तब तक बच्चे स्कूल जा चुके होते हैं। यह विडम्बना सिर्फ पुरूषों के साथ ही नहीं, अपितु महिलाओं के साथ भी है। कितनी ही महिलाएँ ऐसी हैं, जो रात्रि में देर तक टी.वी. देखती रहती हैं और सुबह तभी उठती हैं, जब 'हॉकर' आकर घण्टी बजाता है। माता-पिता की इस अप्रबन्धित जीवनशैली का असर शनैः-शनैः बच्चों पर भी पड़ता है और इस प्रकार पूरा परिवार ही जीवन - प्रबन्धन से वंचित रह जाता है । इतना ही नहीं, शयन की सही विधि भी आजकल लुप्त होती जा रही है। व्यक्ति डनलप के गद्दे पर मुँह ढँककर एवं खिड़की-दरवाजे बन्द कर ऐसा सोता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि कब सूर्योदय होता है, कब चिड़िया चहचहाती है और कब बच्चे स्कूल के लिए रवाना हो जाते हैं। वस्तुतः, यहाँ जैनाचार की उपेक्षा स्पष्ट दिखाई देती है, क्योंकि यहाँ न ब्रह्मचर्य का विवेक होता है और न ही अरिहंत परमात्मा के दर्शन आदि की भावना । व्यक्ति को पता ही नहीं होता कि उसे सोने के पूर्व क्या करना चाहिए, किस करवट से सोना चाहिए, कब सोना चाहिए, कब जागना चाहिए, जागने के पश्चात् क्या करना चाहिए इत्यादि । इन सब विसंगतियों का प्रभाव जीवन के अन्य कार्यों पर तो पड़ता ही है, परन्तु प्रमुख रूप से शरीर पर भी पड़ता है। स्वास्थ्य बिगड़ने के तीन मुख्य कारण हैं - अतिनिद्रा, अनिद्रा एवं असमय निद्रा । ये तीनों विसंगतियाँ भी अनेक शारीरिक रोगों का कारण बन जाती हैं, जैसे मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग, कब्ज, अजीर्ण, अम्लरोग इत्यादि । 28 Jain Education International जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only - 254 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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