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________________ 3.5.6 शिक्षण-पद्धति की समस्याएँ __ आज की शिक्षापद्धति को पूर्णतया दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इतना अवश्य है कि इसमें कुछ ऐसी मूलभूत कमियाँ हैं, जिनसे इंकार भी नहीं किया जा सकता। ये कमियाँ व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए बाधक हैं, अतः इन विसंगतियों से अपने जीवन को बचाने की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति की है और यह शिक्षा-प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है। यहाँ प्रमुख विसंगतियों का वर्णन किया जा रहा है - (1) असन्तुलित शिक्षा (Imbalanced Education) - सन्तुलित शिक्षा वह होती है, जिससे व्यक्तित्व के विविध आयामों का सन्तुलित विकास हो सके। शिक्षाविदों ने शिक्षा के विविध आयामों का अन्वेषण किया है। इसी आधार पर मेरी दृष्टि में, सम्यक् शिक्षा के निम्नलिखित आयाम हैं - 1) शारीरिक विकास (Physical Development) 2) संप्रेषणात्मक विकास (Communication Skills Development) 3) alfech fachkh (Intellectual Development) 4) मानसिक विकास (Mental Development) 5) Taichch fachki (Emotional Development) 6) आध्यात्मिक विकास (Spiritual Development) इन आयामों पर विस्तृत चर्चा आगे की जाएगी, लेकिन यहाँ इतना ज्ञातव्य है कि वर्तमान शिक्षा-पद्धति में जहाँ शारीरिक, संप्रेषणात्मक और बौद्धिक आयामों का अत्यधिक विकास हुआ है, वहीं मानसिक, भावात्मक और आध्यात्मिक विकास का बहुत कम। यह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि भावात्मक और आध्यात्मिक विकास की पहल तो नगण्य है। इसका दुष्परिणाम भी आज सर्वत्र स्पष्ट है, क्योंकि आज व्यक्ति ने शिक्षा के बल पर अभूतपूर्व भौतिक विकास तो कर लिया हैं, लेकिन वह अपनी मनोवृत्तियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। उसका आत्मविश्वास टूट रहा है और आत्मनियन्त्रण छूट रहा है। उसके भीतर काम, क्रोध, भय, ईर्ष्या, कपट, घृणा, कुण्ठा, उन्माद और आलस्य की प्रचुरता है। कहा जा सकता है कि मानव ने सब पर विजय प्राप्त कर ली है, लेकिन वह अपने मन को नहीं जीत पा रहा है। आत्मकल्याण अर्थात् परमसुख की प्राप्ति के लिए आवश्यक पात्रता भी आज नदारद है। मैं कौन हूँ? मेरा क्या स्वरूप है? मैं क्यों दुःखी हूँ? मैं कैसे सुखी हो सकता हूँ? आदि प्रश्नों का सम्यक् समाधान ही आत्मबोध का उपाय है, लेकिन आज ऐसे व्यक्तित्व विरल हैं, जो आत्मस्वरूप के शोध में रुचिवन्त भी हैं। स्पष्ट है, यह सब असन्तुलित शिक्षा का ही दुष्परिणाम है। (2) असमग्र शिक्षा - इसका आशय है – शिक्षा की अपूर्णता। वर्तमान शिक्षा-पद्धति की यह भी एक प्रमुख कमजोरी है। जीवन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा विविध विषयों की शिक्षा-प्राप्ति में अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन 31 145 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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