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8 अभिनन्दन एवं अनुशंसा पत्र है
Prof. (Dr.) D. D. Bandiste (Retd.)
M.A. (Phil.) M.A. (Psy.), LL.B. Ph.D. मुझे हृदय से प्रसन्नता हो रही है कि मुनि मनीषसागरजी का पीएच.डी. की उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध प्रबन्ध "जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व" पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। इस प्रकाशन से पुस्तक के रूप में उपलब्ध होने के कारण समाज को भी काफी लाभ होगा।
मैं तो यह भी चाहता हूँ कि मुनि मनीषसागरजी और भी कुछ पुस्तकें लिखें और प्रकाशित करवाएँ। पुनः अभिनन्दन के साथ......
07 अगस्त, 2012
इन्दौर (म.प्र.)
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डी. डी. बंदिष्टे
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8 साहित्य के क्षेत्र में एक मूल्यवान् हस्तक्षेप -
Prof. (Dr.) Rajendra Chajlani (Retd.)
____Dept. of Physics, Vikram University, Ujjain. (M.P.) जैन दर्शन के आधार पर जीवन-प्रबन्धन की दिशा में विस्तृत विवेचनापूर्ण शोध पर आधारित यह प्रयास स्तुत्य है। जैन दर्शन मूल रूप से एक जीवनशैली है। इसका कुछ भाग आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रतिपादित जीवन मूल्यों से मेल खाता है। प्रकृति और मनुष्य जीवन के सन्तुलन के महत्त्व को विस्तार से समझकर जीवन में उतारने की दिशा में यह ग्रन्थ एक महत्त्वपूर्ण प्रेरक है।
विद्वान् लेखक मुनिश्री मनीषसागरजी म.सा. ने इस शोधग्रन्थ को लिखने में अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया है तथा साररूप में जीवन-प्रबन्धन के सूत्र प्रस्तुत किये हैं। तनाव, शरीर, पर्यावरण,
न के सन्दर्भ में शोध द्वारा जो नियम प्रतिपादित किये गये हैं, उनका अनुकरण सामान्य मनुष्य आसानी से कर सकता है। स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची द्वारा अपना मूल्यांकन करने का अवसर भी प्रस्तुत प्रबन्ध देता है। इस मुल्यांकन को आधार बनाकर एवं नवीन प्रयोग कर कुछ सिद्धान्तों को जीवन में स्थायी रूप से स्थापित करने का मार्गदर्शन इसमें निहित है। जैनदर्शन के और आधुनिकविज्ञान के सिद्धान्तों की समानताओं/असमानताओं को रेखांकित कर विस्तृत अनेकान्त दृष्टि इसमें प्रस्तुत की गई है। यह अध्येता की विज्ञान-पृष्ठभूमि के कारण ही सम्भव हो सका है।
कुल मिलाकर, वर्तमान 'प्रबन्धन' के युग में जीवन-प्रबन्धन पर किये जा रहे विभिन्न समकालीन प्रयासों के बीच यह एक मूल्यवान् हस्तक्षेप है। 12 अगस्त, 2012 उज्जैन (म.प्र.)
डॉ. राजेन्द्रकुमार छजलाणी
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अभिनन्दन के स्वर
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