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________________ 3.4 वर्तमान युग में शिक्षाप्रणाली की विशेषताएँ (गुण-दोष) आधुनिक युग शैक्षणिक क्रान्ति का युग है। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। जहाँ एक ओर इसकी नींव में प्राचीन भारतीय संस्कृति की पुनीत झलक है, वहीं दूसरी ओर पूर्व की विदेशी दासता एवं वर्तमान की पाश्यात्य-संस्कृति के आकर्षण का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। आशय यह है कि वर्तमान भारतीय शिक्षाप्रणाली अनेक संस्कृतियों का सम्मिश्रित परिणाम है, जिससे इसमें गुण-दोष दोनों विद्यमान हैं। इस शिक्षाप्रणाली की मुख्य विशेषताएँ (गुण-दोष) इस प्रकार हैं - (1) भौतिक-शिक्षा पर बल - आज भौतिक-शिक्षा के विकास के लिए गम्भीरतापूर्वक प्रयास किए गए हैं, जिससे विशेषज्ञ डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि की निष्पत्ति सम्भव हो सकी है, किन्तु एकपक्षीय प्रयास के परिणामस्वरूप शिक्षा का नैतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष गौण हो गया है। (2) क्रमबद्ध शिक्षा (Graded Education) - शिक्षा को आसान बनाने के लिए उसे विभिन्न स्तरों में विभाजित किया गया है और इस पद्धति को वर्तमान में 10+2+3 शिक्षाप्रणाली भी कहते हैं। इसमें निम्न क्रम से विद्यार्थियों को अध्ययन कराया जाता है - 1) पूर्व-प्राथमिक या नर्सरी 6) स्नातक (Graduation) 2) प्राथमिक (कक्षा 1 से 5) 7) स्नातकोत्तर (Post Graduation) 3) उच्च प्राथमिक (कक्षा 6 से 8) 8) एम.फिल., पीएच.डी., डी.लिट् आदि अन्य 4) माध्यमिक (कक्षा 9 से 10) विशेष अध्ययन 5) उच्च माध्यमिक (कक्षा 11 एवं 12) शिक्षा की यह क्रमिक व्यवस्था वस्तुनिष्ठ तो है, किन्तु इसमें व्यक्ति के मानसिक एवं भावात्मक विकास को कोई महत्त्व नहीं मिल रहा है। (3) एकीकृत पाठ्यक्रम (Unified Syllabus) – राष्ट्रीय अथवा प्रान्तीय स्तर पर यह व्यवस्था की गई है कि समान शैक्षणिक स्तर वाले विद्यार्थियों का पाठ्यक्रम समान होना चाहिए, किन्तु इसमें वैयक्तिक और प्रादेशिक भिन्नताओं को दृष्टि से ओझल रखा गया। (4) शिक्षास्थान के चयन की सुविधा - यह व्यवस्था है कि विद्यार्थी अपने घर से लेकर विश्व के किसी भी कोने में रहकर विद्यार्जन कर सकता है। इससे शिक्षा क्षेत्र में एक व्यापकता तो आई, किन्तु शिक्षा अतिव्ययसाध्य बन गई। (5) शिक्षापद्धति के चयन की सुविधा - शिक्षा को सर्वोपयोगी बनाने के लिए विविध शिक्षा पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जैसे - नियमित शिक्षा (Regular) और अनियमित शिक्षा (Private), आवासी (Residential), अनिवासी (Nonresidential), दूरस्थ शिक्षा (Distance Education), विविध भाषिक जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 16 130 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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