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________________ विकास होता है। जीवन के विविध पहलुओं में परस्पर समन्वय स्थापित होने से जीवन-ऊर्जा का सर्वाधिक सदुपयोग सम्भव होता है। कठिनाइयों को पार करने का सामर्थ्य विकसित होता है। धीरे-धीरे शान्ति, प्रसन्नता और आनन्दमय जीवन की प्राप्ति होती है। वस्तुतः, नकारात्मक गत्यात्मकता के बजाय सकारात्मक गत्यात्मकता की दिशा में अग्रसर होने से आदर्श-जीवन अर्थात् प्रबन्धित-जीवन की प्राप्ति होती है। प्रत्येक प्राणी जीवन-प्रबन्धन की प्राप्ति के लिए योग्य नहीं होता। मेरी दृष्टि में, जीवन-प्रबन्धन का सम्यक् पात्र बनने के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित चार तथ्यों का होना आवश्यक है - ★ उसे विकास की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए। ★ उसमें विकास की क्षमता होनी चाहिए। ★ उसे विकास की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। ★ उसे विकास की रुचि होनी चाहिए। आवश्यकता, योग्यता, स्वतन्त्रता और रुचि – ये चार तत्त्व व्यक्ति के जीवन-विकास के लिए आवश्यक हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि जीवन के सम्यक् विकास के लिए 'विवेक' का होना भी अत्यावश्यक है। विवेकशील व्यक्ति ही करणीय-अकरणीय का भेद कर सकता है। विवेक की प्राप्ति के लिए जिस साधन या विधि का आश्रय लिया जाता है, उसे 'शिक्षा' कहते हैं। शिक्षा के अभाव में न विवेक होता है और न ही नकारात्मक-गत्यात्मकता पर नियन्त्रण भी। 'शिक्षा' के बिना व्यक्ति की दशा उस दृष्टिहीन व्यक्ति के समान होती है, जो भयानक अटवी से बाहर निकलना चाहता हो, लेकिन निकलने में असहाय हो। डॉ. सागरमल जैन का कहना है कि 'यदि दिशा सही होगी, तो दशा सही होगी और दिशा को सही करने के लिए दृष्टि को सही करना होगा। यह केवल शिक्षा के माध्यम से सम्भव है। शिक्षा से व्यक्ति की बुद्धि और विवेक का विकास होता है। कहा गया है कि ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है, जो उसे तत्त्वों के रहस्य को समझने में समर्थ बनाता है तथा सत्कार्यों में प्रवृत्त कराता है।" सार रूप में कहा जा सकता है कि शिक्षा जीवन में विवेक के समुचित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। अतः हमें शिक्षा-प्रबन्धन को उचित महत्त्व देना चाहिए। =====4.>===== 117 अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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