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________________ 3. 1 शिक्षा का स्वरूप 3. 1. 1 शिक्षा का सामान्य परिचय शिक्षा मानवीय जीवन के प्रबन्धन का सर्वोत्तम साधन है। यह मानव में विवेक को जाग्रत और समृद्ध करती है। विवेकशील मानव ही जीवन की विविध परिस्थितियों से समायोजन कर उनसे उत्पन्न होने वाले दबावों से स्वयं को मुक्त कर सकता है। शिक्षा से जिस ज्ञान ज्योति की प्राप्ति होती है, उससे संशयों का उच्छेद होता है, समस्याएँ दूर करने की कला आती है और जीवन का वास्तविक महत्त्व समझ में आता है।' शिक्षा से प्राप्त ज्ञान ही मानव की सही समझ और सफलता का प्रमुख और प्राथमिक कारण सिद्ध होता है । अध्याय 3 शिक्षा -प्रबन्धन (Education Management ) शिक्षा के लिए ज्ञान, विद्या, अवगम, सीखना आदि पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख भी मिलता है । शिक्षा के सन्दर्भ में कहा गया है। विद्या माता के समान हमारी रक्षा करती है, पिता के समान हितकार्यों में लगाती है, पत्नी की भाँति खेदों को दूर कर प्रसन्नता प्रदान करती है, वैभव का विस्तार करती है और सर्व दिशाओं में कीर्त्ति फैलाती है। 2 अतः सम्यक् शिक्षा के बिना जीवन - प्रबन्धन केवल एक कल्पना ही है। 115 Jain Education International — आदिपुराण के अनुसार, विद्या ही मनुष्य को यश देने वाली है, विद्या ही आत्म-कल्याण करने वाली है, विद्या ही कामधेनु है, विद्या ही चिन्तामणि है और विद्या ही अर्थ, काम एवं धर्म से सिद्ध सम्पदाओं को प्रदान करने वाली है। इतना ही नहीं, विद्या ही बन्धु है, विद्या ही मित्र है, विद्या ही कल्याण करने वाली है, विद्या ही साथ - साथ जाने वाली सम्पदा है और विद्या ही समस्त प्रयोजनों को पूर्ण करने वाली है। कहने का अभिप्राय यही है कि विद्या ही इहलोक और परलोक के पुरुषार्थों को सिद्ध करती है । 1 ऋषिभाषित में शिक्षा के सम्यक् स्वरूप को परिलक्षित किया गया है 'वही विद्या महाविद्या है और वही विद्या समस्त विद्याओं में उत्तम है, जिसकी साधना करने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है। विद्या दुःखमोचनी है। जैन - आचार्यों ने उसी विद्या को उत्तम माना है, जिसके द्वारा अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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