SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 53 संसरणं संसारः परिवर्तनमित्यर्थः । स एषामस्ति ते संसारिणः। 71 चउरिदिया य विच्छू, ढिंकुण भमरा य भमरिया तिड्डा । __ - सर्वार्थसिद्धि, 2/10, पृ. 119 मच्छिय डंसा मसगा, कंसारी कविल डोलाइ।। 54 गइउदयपज्जाया चउगइगमणस्स हेदु वा हु गई। - वही, 18, पृ.9 - गोम्मटसार (जीवकाण्ड), 6/146, पृ. 278 72 तत्त्वार्थसूत्र, 2/11 55 नरकेषु जाता नारकाः 73 पर्याप्ति माहारादिपुद्गलग्रहणपरिणमनहेतुरात्मनः शक्तिविशेषः - वही, 6/147, पृ. 279 __- जीवाजीवाभिगमसूत्र, 1/1/12, पृ. 27 56 हिंसाद्यसदनुष्ठानेषु निरता व्यापृताः प्रवृत्ताः 74 मनुष्य में देवत्व का उदय, पं.श्रीरामशर्मा, 5.8 - वही, 6/147, पृ. 279 75 स्थानांगसूत्र, 3/1/87 57 असुरोदीरिय-दुक्खं, सारीरं माणसं तहा विविह। 76 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/139 खित्तुभवं तिब्वं, अण्णोण्णकयं च पंचविहं।। 77 संस्कृतहिन्दीकोश, पृ. 1030 - कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 35, पृ. 17 | 78 The seven habits of highly effective people, Stephen 58 जैनदर्शनपारिभाषिककोष, पृ. 112 _____R.Covey, p 46 59 तिरियंति कुडिल भावं सुवियड सण्णा णिगिट्ठमण्णाणा। 79 ज्ञानार्णवः, 3/4 अच्चंत-पाव-बहुला तम्हा तेरिच्छया णाम ।। 80 प्रशमरति, 148 - षट्खण्डागम (धवला) 1/1/1/129, पृ. 203 81 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/121 60 भगवतीआराधना, 1982-1987 82 धर्मबिन्दु, 1/56 61 देवगतिनामकर्मोदये सत्यभ्यन्तरे हेतौ बाह्यविभूति विशेषैः 83 त्रीणिछेदसूत्राणि (व्यवहारसूत्र), 10/37, पृ. 55 द्वीपाद्रिसमुद्रादिप्रदेशेषु यथेष्टं दीव्यन्ति क्रीडन्तीति देवाः । - 84 श्रीकुलकसमुच्चय, दानकुलक, पृ. 21 सर्वार्थसिद्धि, 4/1, पृ. 177 85 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/300-301 62 कार्तिकेयानुप्रेक्षा संसार-अनुप्रेक्षा, 59-61, पृ. 24 86 वही, 2/165 63 मण्णंति जदो णिच्च मणेन णिउणा मणुक्कडा जम्हा। 87 श्रीमदराजचंद्र, पत्रांक 738, पृ. 572 मणुउब्भवा य सव्वे तम्हा ते माणुसा भणिदा।। 88 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/157 - गोम्मटसार (जीवकाण्ड), 6/149, पृ. 280 89 मैत्री-प्रमोद-कारूण्य-माध्यस्थ्यानि 64 मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, सत्त्व-गुणाधिक-क्लिश्यमानाऽविनेयेषु । तं जहा-सम्मुच्छिममणुस्सा य, गमवक्कंतियमनुस्सा य - तत्त्वार्थसूत्र, 7/6 - जीवाजीवाभिगमसूत्र, 1/1/41, पृ. 98 90 परात्मनिंदाप्रशंसे सदसद्गुणाऽऽच्छादनोभावने च 65 तत्त्वार्थसूत्र, 2/32 नीचैर्गोत्रस्य। - वही, 6/24 66 वही, 2/25 91 उपासकदशांगसूत्र, मधुकरमुनि, प्रस्तावना, पृ. 6 67 दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तं 92 उत्तराध्ययनसूत्र, 10/2 जहा-तसा चेव थावरा चेव 93 मिथ्यादर्शनाऽविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः । - जीवाजीवाभिगमसूत्र, 1/1/9, पृ. 24 - तत्त्वार्थसूत्र, 8/1 68 वही, 1/1/41, पृ. 25 94 तिण्णं रयणाणमा विभावट्ठ-मिच्छाणिरोहो। 69 संख कवड्डय गंडुल, जलोय चंदणग अलस लहगाइ। - षट्खण्डागम, 13/5/4/26, पृ. 54 मेहरि किमि पुअरगा, बेइंदियमाई वाहाई।। 95 दशवैकालिकसूत्र, 8/39 - जीवविचारप्रकरण, 15, पृ. 7 96 कुक्खी संबलस्स, आनंदस्वाध्यायसंग्रह, पाक्षिकसूत्र, 70 गोमी मंकण जूआ, पिपीलि उद्देहिया य मक्कोडा। पिपाल उदाहया य मक्काजा पृ. 111 इल्लिय घयमिल्लीओ, सावय गोकीडजाइओ।। 97 उपासकदशांगसूत्र, 1/56, पृ. 53-54 गद्दहय चोरकीड़ा, गोमय कीड़ा य धन्न कीडा य। 98 असंविभागी न हु तस्स मोक्खो कुंथु गोवालिय इलिया, तेइंदिय इंदगोवाइ।। - दशवैकालिकसूत्र, 9/2/22 - वही, 16, 17, पृ. 8 99 साहवो तो चियत्तेणं निमंतेज्ज जहक्कम । जइ तत्थ केइ इच्छेज्जा तेहिं सद्धिं तु भुजए।। - वही, 5/1/95 अध्याय 1 : जीवन-प्रबन्धन का पथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy