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________________ चरण (Phase) 1) प्राथमिक चरण का जीवन-प्रबन्धन 2) माध्यमिक चरण का जीवन-प्रबन्धन 3) उच्च स्तर का जीवन-प्रबन्धन 4) उच्चतर स्तर का जीवन प्रबन्धन 5) चरम जीवन-प्रबन्धन जीवन-प्रबन्धक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी परिस्थिति और अपनी क्षमता का सम्यक् मूल्यांकन करके यह नियोजित करे कि - ★ मेरे जीवन-प्रबन्धन का चरमसाध्य क्या है। ★ वर्तमान में जीवन-प्रबन्धन के प्रारम्भ हेतु कौन-सा चरण उपयुक्त है। ★ इस चरण में मुझे कितने समय तक रूकना है। ★ भविष्य में मुझे किस-किस चरण से होते हुए आगे बढ़ना है और * कितने समय तक मुझे अमुक-अमुक चरणों में अभ्यास करना है। उपर्युक्त बिन्दुओं को आधार बनाकर जीवन को सम्यक् दिशा में नियोजित किया जा सकता है और इससे ही जीवन-प्रबन्धन की प्रक्रिया सरल तथा सहज बन सकती है। =====4.>===== जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 72 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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