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________________ 519 गुण कहलाता है। किन्तु जो गुण या धर्म सभी द्रव्यों में समान रूप से पाये जाते हैं उन्हें सामान्य गुण और जो गुण सभी द्रव्यों में समान रूप से नहीं पाया जाकर एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से अन्तर बताते हैं वे विशेष गुण कहलाते हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने अपनी कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में आलापपद्धति, प्रवचनसार आदि के अनुसार ही सामान्य और विशेष रूप में गुण को विभाजित किया है। प्रस्तुत कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में उपाध्याय यशोविजयजी ने आलापपद्धति का अनुसरण करते हुए दस सामान्यगुण और सोलह विशेष गुणों की चर्चा विस्तार से की है। उन्होंने द्रव्यत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरूलघुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ऐसे दस गुणों की विस्तार से चर्चा की है। विशेष गुणों की चर्चा के प्रसंग में उन्होंने ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सुख, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, इन विशिष्ट गुणों के साथ चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व को स्वजाति की अपेक्षा से सामान्यगुण और परजाति की अपेक्षा से विशेष गुण बताया है। ये चार गुण किसी द्रव्य में भाव रूप से और किसी द्रव्य में अभावरूप से होते हैं। इस प्रकार विशेष गुणों का विस्तार से उल्लेख किया है। 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कौन से द्रव्य में कितने सामान्यगुण और कितने विशेष गुण पाये जाते हैं। यहां हम विशेष चर्चा में न जाकर मात्र इतना कहना चाहेंगे कि उपाध्याय यशोविजयजी ने परमार्थ से द्रव्य में अनंत गुण होने पर भी स्थूल व्यवहार की अपेक्षा से दस सामान्य और सोलह विशेष गुणों की चर्चा की है। उनकी दृष्टि में इस मान्यता से वस्तु में अनंत धर्मात्मकता में कोई अन्तर नहीं आता है। जैनदर्शन में वस्तु को जो अनंतधर्मात्मक कहा गया है उसमें न केवल भावात्मक गुणों का समावेश है, अपितु अभावात्मक गुणों का भी समावेश है। उपाध्याय यशोविजयजी ने गुणों की चर्चा के साथ-साथ स्वभाव की भी चर्चा की है। वे कहते हैं कि द्रव्य अनंत स्वभावों का आधार होकर भी एक स्वभाववाला है। द्रव्य को एक स्वभाववाला नहीं मानने पर द्रव्य के गुण बिखर कर द्रव्य का ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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