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________________ आपकी कृतियां जिनशासन का अनुपम वैभव हैं। आपकी लेखनी विविध विषयों पर चली। आगमिक-क्षेत्र में आप सर्वप्रथम टीकाकार थे। आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की। परम्परा के अनुसार आपने एक हजार चार सौ चंवालीस ग्रन्थों की रचना की थी, लेकिन इस विषय में मतभेद हैं। कुछ लोग एक हजार चार सौ ग्रन्थों की रचना करना स्वीकार करते हैं, तो कुछ लोग उन्हें एक हजार चार सौ चालीस ग्रन्थों का रचनाकार मानते हैं, जबकि परम्परा उन्हें एक हजार चार सौ चंवालीस ग्रन्थों का रचनाकार मानती है। श्रीमद् अभयदेवसूरि पञ्चाशक की टीका में उनके एक हजार चार सौ प्रकरण बताए गए हैं।100 श्रीमद् मुनिचन्द्रसूरि ने भी उपदेशपद की टीका में एक हजार चार सौ ग्रन्थों की रचना का उल्लेख किया है। इसी प्रकार, वादिदेवसूरि ने 'स्याद्वाद रत्नाकर' में, मुनिरत्नसूरि ने 'अममस्वामि-चरित्र में' एवं प्रद्युम्नसूरि ने 'समरादित्य संक्षेप' में भी एक हजार चार सौ प्रकरणों की रचना का उल्लेख किया है।101 इसी क्रम से, मुनिदेवसूरि ने 'शान्तिनाथचरित्र' महाकाव्य में102 और गुणरत्नसूरि ने 'तर्करहस्यदीपिका' नामक षड्दर्शन-समुच्चय की बृहत् टीका में और इसी कड़ी में, कुलमण्डनसूरि ने विचारामृतसंग्रह में भी एक हजार चार सौ चवालीस ग्रन्थों की रचना का ही उल्लेख किया है, जबकि राजशेखरसूरि ने प्रबन्धकोश में एक हजार चार सौ चालीस प्रकरण बताकर द्वितीय मत का समर्थन किया है,103 किन्तु रत्नशेखरसूरि ने 'श्राद्धप्रतिक्रमणार्थदीपिकारव्य' नामक टीका में इनके द्वारा एक हजार चार सौ चंवालीस ग्रन्थों की रचना का उल्लेख किया है। इसी क्रम में, 'अचलगच्छीय पट्टावली' में तथा विजयलक्ष्मीकृत 'सूरिरुपदेशप्रसाद' के तृतीय स्तम्भ में भी संख्या एक हजार चार सौ चंवालीस ही बताई है।104 फिर भी, ये मतभेद बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। वर्तमान में आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा विरचित निम्न ग्रन्थ उपलब्ध हैं1. अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति 2. अनेकान्तजयपताका (स्वोपज्ञटीकासहित) 100 पंचाशकटीका, पृ. 486. 101 पण्डित कल्याणविजयजी लिखित 'धर्मसंग्रहणी की प्रस्तावना में, पृ. 07. 102 षड्दर्शनीयसमुच्चय तर्क रहस्य बृहट्टीका, पृ. 01. प्रबन्धकोश, पृ. 25. 10 पण्डित कल्याणविजयजी लिखित 'धर्मसंग्रहणी' की प्रस्तावना में, पृ. 07. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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