________________
वह स्थान आक्रमण के भय से रहित था । मध्यमिका का विकास चित्तौड़ में हो गया । चाहे जो भी हो, मूल बात तो यह है कि यदि ब्रह्मपुरी का संकेत यथार्थ है, तो वह चित्तौड़ अथवा ब्राह्मणों की प्रधानता वाली मध्यमिका कोई कस्बा, उपनगर, अथवा मोहल्ला रहा होगा। इस प्रकार, हरिभद्र के जन्मस्थान के सन्दर्भ में अधिक विवाद नहीं रह जाता है । हरिभद्र का जन्म गंगा (गंगण) की रत्नकुक्षी से हुआ। उनके पिता का नाम
1
शंकर भट्ट था । हरिभद्र का जन्म ब्राह्मण - कुल में हुआ- इस बात की प्रमाणिका उनके पिता के नाम के पश्चात् जुड़े शब्द 'भट्ट' से भी ज्ञात हो जाती है। ° चित्तौड़ के अधिपति जितारि नरेश के राज्य में राजपुरोहित की पदवी से सुशोभित होने के कारण जनसमुदाय में उनकी अच्छी-खासी प्रतिष्ठा थी ।" उन्होंने सभी चौदह विद्याओं को तो कंठस्थ किया ही, साथ ही अपनी विलक्षण प्रज्ञा द्वारा वेद और पुराणों को भी अपनी जिह्वा के अग्र भाग पर स्थिर किया। कितने भी कठिन शास्त्र - प्रवचन क्यों न हों, वे पल भर में उन्हें हल कर देते थे। उनको अपनी बुद्धि पर नाज तथा गर्व था, अभिमान था कि उनसें मुकाबला करने वाला योग्य पात्र इस संसार में दूसरा कोई नहीं है, इसलिए उन्हें 'बहुरत्ना वसुन्धरा' वाली उक्ति भी अवैज्ञानिक लगी। वे अपने-आप को विद्वत्-शिरोमणि मानते थे । पाण्डित्य के अतिशय अभिमान ने उन्हें गुमराह कर दिया था, इसलिए कहीं मेरा ज्ञान पेट फटकर बाहर न आ जाए इस भ्रम से भ्रमित होकर वे पेट पर स्वर्णपट बांधते थे। वह जब भी घर से बाहर निकलते, अपने साथ चार वस्तुएं लेकर जाते थे। वे वस्तुएं निम्नांकित थीं
I
4. जम्बू - वृक्ष की शाखा ।
1. कुदाल 2. जाल 3. सीढ़ी दर्पोन्नत मानस से प्रेरित होकर वे कुदाल इसलिए रखते थे, ताकि विवाद करने वाला प्रतिस्पर्द्धा कहीं भूमि की गहराई में छिप जाए, तो उसे बाहर निकालकर पराजित किया जा सके। जाल रखने का कारण यह था कि शास्त्रार्थ में पारंगत विद्वान् कहीं अतल जलराशि में डुबकी लगा रहा हो, तो उसे जाल में फंसाकर बाहर निकाला जा
70
एवं सो पंडित्तगव्वमुव्वहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो । -
पृ. 5अ.
अतितरलमतिः पुरोहितोऽभुन्नृपविदितो हरिभद्रनामवित्तः । ।
71
- कहावली, पत्र- 300.
धर्मसंग्रहणी की प्रस्तावना से उद्धृत,
Jain Education International
35
• हरिभद्रसूरिचरित्र, शृंडग- 9, श्लोक 8.
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org