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________________ 31 झाणज्झयणं पर हरिभद्र ने संस्कृत भाषा में विस्तार से टीका लिखी है जो हमारे शोध का विषय है। रचनाकाल - प्रस्तुत ग्रन्थ के रचनाकाल को लेकर कुछ विद्वानों की अपनी भिन्न-भिन्न विचारधाराएं हैं। यदि हम इस कृति के रचनाकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण को मानते हैं, तो यह स्पष्ट है कि जिस काल में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण उपस्थित थे, वही काल इसका रचनाकाल होगा। जिनभद्रगणि के स्वर्गकाल के सन्दर्भ में भी कुछ ग्रन्थों के अलग-अलग विचार हमारे समक्ष हैं। 'विचारश्रेणी-ग्रन्थ' के आधार पर जिनभद्रगणि का स्वर्गवास वीर संवत् 1120 माना गया है। उसके अनुसार, उनका देहावसान विक्रम संवत् 650 या ईस्वी सन् 593 में हुआ होगा- ऐसा प्रतीत होता है। 'धर्मसागरीयपट्टावली' के अन्तर्गत जिनभद्रगणि का स्वर्गवास विक्रम संवत् 705 के आसपास का माना गया है, तदनुसार वे ईस्वी सन् 649 में स्वर्ग सिधारे थे। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के ग्रन्थों में सिद्धसेनगणि आदि के सन्दर्भ तो मिलते हैं, लेकिन उनके ग्रन्थों में वीर निर्वाण संवत् 1120 तदनुसार विक्रम संवत् 650 के बाद हुए किसी भी आचार्य के मत का वर्णन अब तक तो दृष्टिगोचर नहीं हुआ है, अतः वे विक्रम की सातवीं शती में ही हुए हैं। जिनदास द्वारा विरचित नन्दीसूत्र की चूर्णि (वीर निर्वाण 1203, तदनुसार विक्रम संवत् 733 में रचित) में जिनभद्रगणिकृत विशेषावश्यकभाष्य का उल्लेख उपलब्ध है, अतः भाष्य विक्रम संवत् 733 के पूर्व लिखा गया है। इन तथ्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उनका स्वर्गवास अधिक-से-अधिक वीर निर्वाण 1120 तदनुसार के आसपास का रहा होगा। यह सुस्पष्ट है कि विशेषावश्यकभाष्य तथा उसकी स्वोपज्ञटीका उनकी चरम कृति के रूप में प्रसिद्ध है, अतः हम कह सकते हैं कि 'झाणज्झयण' की रचना लगभग ईस्वी सन् सातवीं शताब्दी के मध्यकाल में ही हुई होगी। हमको यह बात भी मानना पड़ेगी कि जिनभद्र 5 विचारश्रेणी गन्थ, प्रस्तुत सन्दर्भ ध्यानशतक : एक परिचय से उद्धृत है। 59 धर्मसागरीय पट्टावली,, प्रस्तुत सन्दर्भ ध्यानशतक : एक परिचय से उद्धृत है। 60 जैन धर्म के प्रभावक आचार्य, पृ 425. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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