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हैं तथा आर्य-देशों और राजधानियों की सूचना इस भाष्य में मिलती है। विशेषावश्यकभाष्य तथा जीतकल्पभाष्य के प्रणेता आचार्य जिनभद्रदासगणि हैं।
भाष्यकार जिनभद्रगणि - भाष्यकारों में जिनभद्रगणि का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। उत्तरवर्ती-काल के आचार्यों ने जिनभद्रगणि को भिन्न-भिन्न उपमाओं से अलंकृत किया था, जैसे- भाष्यसुधाम्भोधि, भाष्यपीयूषपायोधि, प्रशस्तभाष्यसस्यकाश्यपीकल्प, दलितकुवादिप्रवाद आदि। ये भारतीय-न्याय तथा अन्य दर्शनों के अध्ययन में भी ख्याति प्राप्त विद्वान् रहे थे। भाष्यकार की आगम-परम्परा में विशेष रुचि दृष्टिगोचर होती है। इनकी कृतियां संस्कृत तथा प्राकृत-भाषा में प्राप्त होती हैं। इनका संस्कृत तथा प्राकृ त-भाषा पर प्रभुत्व था, इसलिए प्रायः सभी कृतियों की आधार-भाषा संस्कृत तथा प्राकृ त है।
आचार्य जिनभद्रगणि की स्वतन्त्र रूप में विरचित कृतियों की सूची इस प्रकार है1. विशेषावश्यकभाष्य (प्राकृत पद्य में) 2. विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति (अपूर्ण संस्कृत गद्य) 3. बृहत्संग्रहणी (प्राकृत पद्य में) 4. बृहत्क्षेत्रसमास (प्राकृत पद्य में) 5. विशेषणवती (प्राकृत पद्य में) 6. जीतकल्प (प्राकृत पद्य में) 7. जीतकल्पभाष्य (प्राकृत पद्य में) 8. अनुयोगद्वारचूर्णि (प्राकृत पद्य में)
9. झाणज्झयण (प्राकृत पद्य में) . ___ प्रस्तुत कृतियों में झाणज्झयण (ध्यानशतक) कृतित्व के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं, किन्तु मेरा एवं मेरे निर्देशक डॉ. सागरमल जैन का यह दृढ़ मत है कि झाणज्झयण अपरनाम ध्यानशतक के कर्ता जिनभद्रदासगणि क्षमाश्रमण ही हैं।
48 विशेषावश्यकभाष्य, अनुवाद, डॉ० दामोदर शास्त्री, भाग- 1, प्रस्तावना, पृ. 53. (क) जैनधर्म के प्रभावक आचार्य से उद्धृत, पृ. 420. (ख) जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग- 3, प्रास्ताविक, पृ. 12.
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