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पंडित सुखलालजी के शब्दों में - "यह मात्र मेरी मान्यता नहीं, अपितु समस्त विद्वत्-जनों की मान्यता है कि जैसे वैदिक - परम्परा में जगद्गुरु शंकराचार्य का स्थान है, वैसे ही जैन - परम्परा में प्रज्ञापुरुष उपाध्याय यशोविजयजी का स्थान है |”105
यशोविजयजी का जीवन-परिचय
यशोविजयजी के जीवन - वृतान्त के सन्दर्भ में उनके समकालवर्त्ती श्रमणों के द्वारा जो जानकारी उपलब्ध हुई, उसी के आधार पर उनके जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जा रहा है। उनके जन्म- समय, जन्मं - स्थल, माता-पिता के बारे में अतिसंक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
जन्मकाल : उपाध्याय यशोविजयजी के जन्मकाल के सन्दर्भ में दो भिन्नभिन्न मान्यताएँ हैं, जो महत्त्वपूर्ण प्रमाण के रुप में प्रसिद्ध हैं, यथा
1. वि.सं. 1663 में वस्त्र पर आलेखित मेरुपर्वत का चित्रपट |
2. यशोविजयजी के समकालवर्त्ती मुनि कान्तिविजयजी द्वारा प्रणीत 'सुजसवेलीमास' नामक कृति ।
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उपर्युक्त दोनों प्रमाणों के अनुसार यशोविजयजी का जन्मकाल लगभग विक्रम संवत् 1645 के आसपास रहा होगा । आपश्री का देवलोकगमन वि.सं. 1743-44 में हुआ था, अतः उपाध्यायजी की आयु करीब सौ वर्ष की रही होगी ।
105 उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ से उद्धृत, पृ. 38
जन्म-स्थल : जन्म - स्थल के संदर्भ में कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन 'सुजसवेलीभास' के आधार पर उनका जन्म गुजरात के अन्तर्गत पाटन नगरी के निकट ही धीणोज गांव से थोड़ी दूरी पर स्थित 'कनोड़ा' नामक एक छोटे से गांव में हुआ होगा । उपाध्यायजी के पिता का नाम नारायण और माता का नाम सौभाग्यदेवी था।
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