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________________ . 17 दो ही महान् प्रज्ञावान् आचार्य हुए हैं, लेकिन यह तो स्पष्ट है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्त्ता इन दोनों में से एक भी नहीं हैं, अतः यह भी मानना उचित ही है कि श्वेताम्बर–परम्परा के आचार्य जिनभद्रगणि ही ध्यानशतक अथवा ध्यानाध्ययन के कर्ता हैं। दूसरा यह कि यह कृति दिगम्बर एवं यापनीय-परम्परा की भी नहीं हो सकती है, क्योंकि यह कृति महाराष्ट्री प्रभावित अर्द्धमागधी की है और किसी भी दिगम्बर या यापनीय आचार्य ने अर्द्धमागधी भाषा में कोई भी रचना नहीं की है। उनकी सभी रचनाएं शौरसेनी या जैन-शौरसेनी प्राकृत में हैं। सभी सन्देहों के परिप्रेक्ष्य में डॉ. सागरमल जैन ने अपनी जैन-धर्म-दर्शन एवं संस्कृति (शोधलेखों का संकलन) नामक पुस्तक में यह स्पष्ट कर दिया है- 'मेरी दृष्टि में यह ग्रन्थ नियुक्ति के बाद का और जिनदासगणि महत्तर की चूर्णियों के पूर्व भाष्यकाल की रचना है, अतः इसके कर्ता विशेषावश्यकभाष्य के कर्ता जिनभद्रगणि ही होने चाहिए। 36 पण्डित दलसुखभाई ने इसे नियुक्तिकार की रचना माना है, लेकिन डॉ. सागरमल जैन के अनुसार नियुक्तिकार की रचना मानना भी सम्भव नहीं है, क्योंकि यह भाष्यकाल के दौरान रची गई कृति है, जो हरिभद्र के पूर्व की कृति है। चूंकि नियुक्तियों, भाष्यों के बाद चूर्णियों का समय आता है और चूर्णियां प्राकृत ग्रन्थ में लिखी जाती हैं, इसलिए उनकी शैली और भाषा आदि की दृष्टि से देखा जाए, तो यह ग्रन्थ चूर्णियों से पूर्ववर्ती है, अतः इसे इसके भाष्यकार जिनभद्रगणि की कृति मान लेना ही उचित प्रतीत होता है। निष्कर्ष - इस सम्पूर्ण चर्चा के आधार पर हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि 'ध्यानशतक' नामक प्रस्तुत कृति का रचनाकाल आठवीं शताब्दी से पूर्व एवं छठवीं शताब्दी के पश्चात् ही होना चाहिए। अन्य अपेक्षा से यह कृति नियुक्ति के पश्चात् और चूर्णि के पूर्व ही लिखी गई है, अतः इसे भाष्यकाल की रचना ही मानना होगा। भाष्यों का रचनाकाल विक्रम संवत् सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध और भाष्यकार के रूप में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का नाम सुस्पष्ट है, अतः निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि 'झाणज्झयण' अपर 'ध्यानशतक' विक्रम की सातवीं शती में भाष्यकार जिनभद्रगणि द्वारा ही रचित है। 36 जैनधर्म-दर्शन एवं संस्कृति, भाग - 7, पृ. 43. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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