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________________ 339 जहाँ तक ध्यान के स्वरूप का प्रश्न है, आदिपुराण और ध्यानशतक -दोनों ही ग्रन्थ ध्यान के संबंध में विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हैं। ध्यानशतक के अनुवादक एवं भूमिका के लेखक पं. बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री का स्पष्टतः यह मंतव्य है कि आदिपुराण का ध्यान-संबंधी विवेचन ध्यानशतक से प्रभावित है। उनकी दृष्टि में यह मानना है कि आदिपुराण का ही प्रभाव ध्यानशतक पर आया है, लेकिन यह मानना उचित नहीं है, क्योंकि ध्यानशतक की रचना हरिभद्र के पूर्व हो चुकी थी और हरिभद्र निश्चित ही जिनसेन के पूर्ववर्ती हैं, अतः यही मानना होगा कि जिनसेन के समक्ष ध्यानशतक रहा होगा और उन्होंने उसका उपयोग आदिपुराण में ध्यान संबंधी विवरण देते समय किया होगा। ध्यानसाधना और लब्धि - आत्मा अनंत शक्तिमान है। इस शक्ति का प्रकटीकरण ध्यान एवं साधना से होता है। ध्यान 'लब्धि' को प्रदान करता है। सामान्यतया, विशिष्ट शक्तियों की उपलब्धि को लब्धि कहा जाता है। भगवतीसूत्र की वृत्ति 151 में लिखा है - "जिससे आत्मा के ज्ञान-दर्शन-चारित्र-वीर्य आदि गुणों से उन-उन कर्मावरणों के क्षय व क्षयोपशम से स्वतः आत्मा में जो शक्ति प्रकट होती है, उसे लब्धि कहते हैं। लब्धि, अर्थात् लाभ। 152 'प्रवचनसारोद्धार' के अनुसार, लब्धि का अधिकार उस साधक को मिलता है, जिसका अन्तःकरण विशुद्ध अध्यवसाय वाला हो, जो निर्दोष चारित्र-पालन करने वाला हो और उत्कृष्ट तथा शुद्ध तपस्वी हो। 153 इसी कारण से तो शुद्ध आत्म-शक्ति का प्रकटी करण ही लब्धि है। बौद्ध-दर्शन में लब्धि को अभिज्ञा तथा 151 आत्मनो ज्ञानादि गुणानां तत्कर्म क्षयादितो लाभः । - भगवतीसूत्रवृत्ति 8/2, प्रस्तुत संदर्भ जैनधम में तप -सं. मिश्रीमल म.सा. पृ.68 से उद्धृत 152 प्रस्तुत वाक्य 'जैनसाधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व' पुस्तक से उद्धृत, पृ.470 153 परिणाम तववसेण इमाई हुंति लद्धीओ - प्रवचनसारोद्धार, द्वार 270, गाथा 1495 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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